________________
छापालीसमो संधि कहौंपर किसीका सिर जलने लगा, कहीं किसीका कवच और कटिसूत्र । कहीं किसीका, शृंखलासहित कवच खिसक गया । इस प्रकार आगकी प्रचण्ड ज्वालामें शत्रुसेनाकी नाक घूमने लगी? केवल महेन्द्र-पुत्र ही शेप रहा । वह पवनपुत्रके पास इस प्रकार पहुँचा मानो सिंहके पास सिंह पहुँचा हो । वह जब तक अपने वरुण तीरका संधान करता तब तक पवन-पुत्र हनुमानने रुष्ट होकर अपने स्वर्णिम तीरोंसे उसे आहत कर दिया । तथा दुर्जनके हृदयकी तरह उसके श्रेष्ठ धनुषको छिन्न-भिन्न कर गिरा दिया ॥१-१०॥
[६] और जब तक महेन्द्रपुत्र दूसरा धनुष ले, तबतक हनुमानने तीरोंसे उसका रथ छेद डाला । उसके श्रेष्ट स्थकी पीठ टुक-टूक होने पर, जुते हुए अश्व गिर पड़े। छत्र-दंड मुक गया। पताका छिन्न-भिन्न हो गई। तब महेन्द्रपुत्र दूसरे विमानपर जाकर बैठ गया । किन्तु पवनपुत्रने उसे तीरोसे उसी प्रकार नष्ट कर दिया जिस प्रकार सिद्ध पुरुष नरकके घोर दुखोंको नष्ट कर देते हैं ।।१-४॥
तब महेन्द्रपुत्र अस्त्रहीन होकर ही तमतमाता हुआ निकला, अब वह निग्रंथ मुनिको भाँति प्रतीत हो रहा था । किंतु हनुमानने उसे आहतकर बाँध लिया। उसे उसने वैसे ही उठा लिया जैसे गरुड पक्षी साँपको उठा लेता है । इस प्रकार अपने पुत्रके आहत ओर बद्ध हो जानेपर राजा महेन्द्रने युद्धरत पवनपुत्र हनुमानको ललकारा, और प्रहरणशील दुर्दर्शनीय और भयभीषण वह, अंजनाके प्रियपुत्र हनुमानसे आकर भिड़ गया। उसके हाथ में खड्ग, और नुकीले तेज मुद्गर थे। खेल बावल और मालेसे
|