SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भट्टचालीसमो संधि बध किया है, उससे निश्चय ही आज तुम्हारा क्षयकाल आ गया है" | यह सुनकर भट-संहारक हनुमानने उसकी भत्सना करते हुए कहा, “भाग, मेरे सामने मत ठहर । बता, कहीं क्या कन्याके साथ भी लड़ा जाता है ?" ॥ १-६॥ [६] हनुमानके वचन सुनकर, प्रघर धनुष धारण करनेवाली वह लंकासुन्दरी, विभ्रम पूर्वक हसने लगी, और बोली, "मैं जानती हूँ कि तुम बहुर जानकार हो। परंतु इस प्रकारके प्रलापसे तुम मूर्ख ही प्रतीत होते हो, दुर्विदग्ध, तुम यह क्या कहते हो | क्या ( आगकी) चिनगारी पेड़को नहीं जला देतो । क्या विपद्रुम लतासे आदमी नहीं मरता । क्या नर्वदा नदीके द्वारा विंध्याचल खंडित नहीं होता है क्या चप्राशनिसे पहाड़ नहीं टूटता, क्या सिंहनी गजको नहीं मार देती । क्या रात गगनमार्गको नहीं ढक देती, क्या वह सूर्यका सूर्यत्वको भग्न नहीं कर देती । यदि तुम्हारे मनमें इतना अभिमान है तो तुमने आसालीके साथ युद्ध क्यों किया। इस प्रकार गरजकर निशाचरी लंकासुन्दरीने तीरसमूह छोड़ दिया। वहायुधको लड़की लंका सुन्दरीके द्वारा प्रेषित, पंखकी तरह उजले पुंखोंसे विभूषित तोरीके जालसे आकाश इस तरह छा गया जिस तरह मिथ्यात्वके बलसे लोगोंका मन आछन्न हो उठता है ।।१-६॥ [१०] लेकिन हनुमान तब भी चाणोंसे छिन्न-भिन्न नहीं हुआ, वैसे ही जैसे परमागम अझानियोंसे छिन्न नहीं होता। तदनन्तर उसने भी पहला तीर मारा मानो कामदेवने ही रातके लिए अपना दूत भेजा हो । हनुमानके दुर्निवार और चलते हुए बाणाने लंकासुन्दरीके तीर समूहको उसी प्रकार छिन्न-भिन्न करके ले लिया जिस प्रकार लोग काबेरीके जलको भग्न करके ले लेते
SR No.090355
Book TitlePaumchariu Part 3
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages261
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy