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पउमचरित
[ 1] बुधइ वजयपणेणं सजल-लोयणे ।
'मग्गिड देमि रज्जु किं गहष्णु भोपणेणं' ॥१॥ एम मणेपिणु अण्णुधाइउ। शिविसे रामहाँ पासु पराइल ॥२॥ खणे कचोल थारू श्रोयारिष । परियस-सिप्पि-सस विस्थारिथ ॥३॥ बहुबिह-खण्नु-पधारे हिनदिड। उच्छु-पण पिव मुह-रसियति ॥१॥ जमाण पिष सुकु सुमन्धर । सिखहाँ सिद्धि-सुई पित्र सिडउ ॥५॥ रेहा भसण-घेल वहाहाहाँ। णाई विणिग्गय समय-समुपदों ॥३॥ अवक-पपसर-कर-फेणुब्बल। पेजावत दिन्सि बल सम्मल ॥७॥ घिय-कहोक-वोल पवहन्सी । सिम्मण-तोय-तुसार मुअन्ती ॥८॥ सालण-सम-सेवाल-करम्विय । हरि-हकहर-जलघर-परिचम्विय १९॥
धत्ता किं बहु-चविण सच्छाउ सलोणु स-विजणु । इट-कलत्तु व तं भुतु जाहिच्छएँ भोयणु ॥५०||
[१२] भुावि रामचन्देष्यं पमणिओ कुमारो ।
'भोरणुपा होइ ऍट उवयार-गरम-भारो ॥१॥ पडिउचयार किं पि विण्यासहि । उभय-वलेंहि अप्पाशु पगासहिं ।।२।। सं सीहोयरु गम्पि णिवारहि । अन्हें रजहाँ सन्धि समारहि ॥३॥ घुबह मरहें दूउ विसजिउ । जउ वजयण्णु अपरजिउ ॥४॥ सेण समाणु कवणु किर विमाहु। जै आयामिउ समरे परिग्गहु ॥५॥ सं णिसुणेवि वयणु रिड महशु । रामछौं चलणे हि पविउ जणणु ॥३॥ "अग कियाथु अज्नु हउँ धण्णव । जे एस देव प. दिपणउ' ॥७॥