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पउमचरिड
गाउ एम मणवि भुइ-दण्ड-पण्ड । गं मत्त-महागउ गिल-गण्ड ॥५॥ तं दसउर-प्पयरूपइट केम। जण-मण-मोहन्त अणा जेम ।।६।। दुम्मार-वरि-सरा-पाण-पोक !ीसहित मा परिस्सिोर ।।।। वं लवणु लम्खिउ राय-वारें। पबिहार कुसु 'म मंणिपार' ॥८॥ संघषणु सुवि पहठ्ठ वीरु। घाइवाइ-लच्छि-समिय-सरीक ॥९॥
__घत्ता दसउर-णाहण लक्षिजइ पन्तउ सफ्षणु। रिसह-जिणिन्देण णं धम्मु अहिंसा-शक्षणु ॥१०॥
[१ ] हरिसिउ वजयमणु दिटेण लक्खणेणं ।
पुणु पुणणेह-पिग्मरो चविउ सक्षणेणे ॥१॥ 'किं देमि हस्थि रह पुरय-यह। विनछुरिय-फुरिय-मणि-मउड-प ॥२॥ किं पर हि किं स्यणेहिँ कम्यु। किणरवर-परिमिट देमि रज्जु ॥३॥ किं देमि स-विममु पिण्डबासु। किं स-सुउ-स-कम्तउ होमि दासु'॥४॥ तं षषणु सुणे विहरिसिय-मणेण । पडिवुत णराविड लक्षणेण ।५।। 'कहिं मुणिवरु कहि संसार-सोक्छ । कहिं पाव-पिण्टु कहिं परम-मोक्खु ॥६॥ । कहिँ पायउ केत्थु कुटुछ बयणु। कहिँ कमल-सण्ड कहि घिउल गया॥ कहिं मयगले हलु कहिं उन्हें घण्ट । कहिँ पन्धित कहिं रह-तुरप-थट्ट ॥८॥ सं पोलहि जं ण घडाइ कलाएँ। अम्हई चाहिय मुकाम खलाएं ॥९॥
पत्ता
सु९ साहम्मिा त्य-धम्मु करन्तु ण थक्काहि । मोमण मग्गिन सिहुँ जण? देहि जइ सकहि' ॥१०॥