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पउमचरित
[+] जं जग-णा दिदा वरू-सीय-सरपणा ।
विहि मिजणेहिँ बन्दिओ विविह-वन्दणेहिं ॥३॥ 'जय रिसह दुसह-परिसह-सहण । जप अजिप अधिय-बम्मह-महण ॥२॥ सय संभव संमव-णिहलण। जय अहिणन्दण णन्दिप-चला ॥३॥ जय सुमाइ-भडारा सुमइ-कर। पउमप्पह एउमप्पड-पवर ||४|| अब सामि सुपास सु-पास-हण ।। चन्दम्पह पुष्पा-धन्द-वयण ॥५॥ अब जय पुष्फपन्त पुफ्फचिय। जय सीयल सीयल-सुह-संधिय ॥३॥ जय सेयर सेयंस-मिण । जय वासुपुन पुजिय-चलण ॥७॥ अब विमल-मवारा विमल-मुह । प्राय सामि अणन्त भणन्त-सुह ॥८॥ जय धम्म-जिणेसर धम्म-धर। जब सन्ति-मडारा सन्ति-कर ॥॥ वय कुन्थु महरथुइ-थुम-बलण। जय अर-अरहन्त महम्स-गुण ॥१०॥ जय मलि महल-मल-मलण। मुणि सुष्वम सु-स्थय सुख-मण' ।।११॥
घत्ता वीस वि मिणघर बन्देपिणु रामु पइसाइ । अहिं सीहोयरु त णिलउ कुमार पईसइ ।।१९।।
[१] ताम णरिन्द-वारे घिर धोर-बाहु-जुअली ।
सो पबिहार दिटु सहस्थ-देसि-कुसलो ॥ १॥ पइसन्तु सुहङ्क तें धरिउ केम। णिय-समएं लवणसमुदु जेम ।।२।। तं कुविउ कोरु विप्फुरिय-क्यणु । बिहुणस्तु हस्थ णिरिप-णयणु ।।३।। मणे चिम्तइ बइरि-समुह-महणु ! 'कि मारमि गां गं कघणु गहणु' ॥४॥