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पउमचरिउ
धत्ता
धीरिय मरह गरिन्दे होउ मा
रखें ।
मडु
आगमि लक्षण - राम सेव हि काइ अकज्जै ॥ ९ ॥
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एम भणेषि मरहु संचाले ।
जय-पह पवजिङ ।
तुरिं गवेसह स्थलि ॥१॥ चन्दुगमें उहि पराजित || २ || जीव हो कम्सु जेम अलग्गड ||३|| सोय स-लक्षणु राहउ जेत हें ||४||
दिष्णु स पहु-मगेण पराहिङ लग्गड । चट्टएँ दिवसें पराइ तेहें । छु छुनु सलिलु पिएषि गिरि चलणेंहिँ पडिङ मरहु तग्गय मणु 'थक देव मं जाहि पवासही । ह सतुहणु
।
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सरवर तीर लयाहरें दिन हूँ ॥५॥ गाईं जिणिन्दह दससयलीय ॥ ६ ॥ होहि तरण्ड दुसरह - सह ||७|| लक्खणु मन्ति सीय महए कि ॥८॥
भितउ वे बि ।
घत्ता
जिह क्खतेंहिँ चम् इन्दु जेम सुर-लोएं |
विह तुहुँ भुजहि रज्जु परिमिड बन्धव- लोएं || १॥
संवय सुर्णे वि दसरह सुएण | सउ माया-पिथ-परम-दासु । अवरोप्यरु ए भालाब जाम । लक्खिज्जइ मरड़ों तणिय माय ।
लिलय विहूसिय बच्छराइ । गं भरहों सम्पय- रिद्धि-विद्धि ।
मरहों सुन्दर सोक्ख-खाणि ।
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अवगृ मरहु इरिखिय- भुएण ||१|| पर मे वि अण्णहाँ चिणड कासु ॥२॥
त्रिइ सय परिथरिय ताम ॥ ॥ ३ ॥ र्ण मय वह मंड भजन्ति आय || ४ || स- पहर अम्बर-सोह पाएँ ||५||
रामों गमों वणिय सिद्धि ॥६॥ णं रामहीँ इट्ठ-कल-दाणि ॥७॥