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पउमचरित
[१२] उजरहे दाहिण-दिसएँ विणिग्गय । णा णिरक्स मत्त महा-ाय ॥१॥ ण सहइ परि वल-लक्षण-मुकी। मुक कु-गारि व पेसण चुकी ॥२॥ पुष्णु थीवन्तर विश्थय-णामहो। तरुवर मिय सुमित्र व रामों ॥३॥ उटिम लिन माल का
निग महल पहल ।।३।। अद्ध-कोसु संपाइय जाहिं। विमल विहाणु चादिसुतावेहिं ।।५।। णिसि-णिसियरिएँ भासि जंगिलियड । णाई पडीघड जड उग्गिलियट ॥६॥ रेहइ सूर-विम्वु उग्गन्सउ । णापइ सुकह-कवु पह-बन्सउ ॥७॥ पच्छाएँ साहणु ताम पधाइट । बहु हलहेइह पासु पराइल ॥८॥ .
घत्ता सीय-सलकरपणु रामु पणमिउ गरवर-विन्देहि । णं बन्दिउ अहिलेएं जिणु वत्तीसहि इन्दं हि ॥९॥
[१३] हेसन्त-तुरङ्गम-वाहणेण । परियरिउ रामु णिय-साहणेण ॥३॥ णं दिस-गउ लोल' पयाँ देन्तु । तं देसु पराइड पारियसु ॥२॥ अण्णु वि धोवन्तरु जाइ जाम । गम्मीर महाणह दिट्ट ताम |॥३॥ परिहन्छ-मरछ-पुछुपछलन्ति । फेणावलि-तोय-तुसार दैन्ति ॥३।। कारपड-दिम्भ-म्भिय-सरोह। घर-कमल-करम्बिय-जलपओह ।।५।। हंसावलि-पक्रष-समुहसन्ति । कालोल-छोल-आचत्त दिन्ति ||६|| सोहइ बहु-वणगय-जूह-सहिय। सिण्डीर-पिण्ड दरिसन्ति अहिय ॥७॥ उच्छलइ थलइ पडिखलइ धाइँ । मल्हन्ति महागय-लीलगाई ।।८।।
घत्ता ओहस्मयर-उन सा सरि भयण-कडक्खिय । दुत्तर-दुष्पइसार णं दुग्गइ दुप्पेक्षिय ।।१।।