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एम भणेपिणु चलिउ तुरतउ । धवल सण- गीलुप्पल - साहिं । सोहण देवि मावइ ।
णं किय-सहत्थु वाहावर । भर रिन्दों णं आणावइ । पुणु पाआर-भुयउ पसरेविणु ।
पउमचरिव
तो परे यणाणन्दें । विणु हालिर |
'तत'
चाव-सिलीमुह-हत्य वेषि समुण्णयमाणा ।
नहीं मन्दिरों रूप तहाँ नाइ विणिसाय पाणा ॥ १२ ॥
बि मन्दिरहों विणिमाच जाणइ । छन्दों णिग्गय गायन्ती । पाइँ कित्ति सम्पुरिस - विमुखी 1 सुल लिय- चलण-जुयल - महन्ती ।
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सलु वि परियणु आउच्छन्त ॥ ६ ॥ घरु सुचन्तर लषण - रामहि ॥७॥ हु चिन्दाइ णावई ॥८॥ दो कहाणि णं दाव ॥९॥ 'हरि-वल जन्त शिवारहि णरषद् ॥ १० ॥ पाइँ णिवार आलिङ्गेणु ॥ ११ ॥
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उर-हार-डोर गुप्यन्ती । हेट्ठा-मुह कम-कमलु गियच्छेवि !
राय बारु चलु बोलिए जायेंहिँ । उडिव धगधगन्तु जस- उ । णाइँ भइन्दु महा-घण-गज्जिएँ।
संचलन्तें राहवचन्दे ॥ १ ॥
णं चित्तेण चित संचाकिंत ॥२॥ णं हिमवन्तों गङ्ग महा-प ॥३॥ र्ण सोंणीसरिय विहत्ती ॥ ४ ॥ नाइँ रम्भ जिय-थाहो चुकी ॥ ५ ॥
गय घड भड थद विन्ती || ६ || बहु-सम्बोल - पढें खुप्पन्ती ॥७॥ अवराय - सुमित्ति आउच्छे चि ॥ ४ ॥
घत्ता
विग्गय सीमाएबिसिय हरन्ति णित-भवणहीँ । रामही खुप्पत्ति असणि णाइँ दहवयणहाँ ॥९॥
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लख मणे आरोसि ताहिं ॥ १ ॥ णाएँ विष्ण सित्तु भूम ||२|| सिंह सोमिति कुविङ गर्ने सज्जिएँ ॥ ५ ॥