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पउमरित
सं णिसुणेनि बलेण पनपिउ । 'भरहहाँ सयलु वि रज्जु समपिउ ॥७॥ जामि माएँ दिउ हियवएँ होजदि। जं दुम्मिय तं सच्चु समेजहि ॥८॥
पत्ता जै आउच्छिय माय हा हा पुत्त' मणस्तो । अपराह्य महावि महियौं पदिय स्यन्ती ।।९।।
[] रामे जगणि जं में भाउछिय। णिरु णिचेयण तक्खणे मुष्टिय 112॥ लज्जियाहिं 'हा माग' यणन्तिहिँ ! हरियन्दपोश मित्त रेखान्तिहि ॥२॥... चमरुक्लेवहि किय पडिवायण । दुषम्बु-दुक्खु पुणु जाय स-यण ॥३॥ अङ्गु बलन्ति समुहिय राणो। सप्पि व दण्डाहय विदाणी ॥४॥ णोलक्रवण गोरामुम्माहिय। पुणु वि सदुक्खड मेल्लिय धाहिय ॥५॥ 'हा हा काइँ चुत्तु पर इलहर। दसरह-वंस-दीव जग-सुन्दर ।।६।। पई त्रिणु को पल्ला सुवेसह । पई घिणु को अस्थाण धईस ॥७॥ पइँ विणु को हय-गयहँ चचेसह । पद विगु को सिन्दुऍण रमेसइ ॥८॥ पइँ विशु रायलच्छि को माणइ । पइँ विशु को तम्बोल समाणइ ॥॥ पएँ विणु को पर-बलु मझेसह । पइँ विणु को मइँ साहारेसई' ॥१०॥
घत्ता तं कृवार सुणेवि अन्तेवर मुह-तुपणउ । लक्खणाम-विओएं धाह सुएत्रि परुपणउ ॥११॥
सा प्रत्यन्तर असुर-विम। धीरिय शिय-जणेरि बलहः ॥१॥ 'धोरिय होहि माएँ कि रोवहि । लहि लोयण अपाशु म सोयहि ॥२॥ जिह रवि-किरणहि ससि पा पहावह। तिह माई होन्तें मरहु ण मावइ ॥३॥ ते कज्जे घण-धासें वसेवउ । तायहाँ तणउ सधु पालेवउ ॥३॥ दाहिण-देसें कोविशु थत्ति । तुम्हहँ पासें ए४ सोमित्ति' ॥५॥