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________________ बायालीसमो संधि ३१. इसकी तुलनामें सुन्दर वेशवाली अनेक रूपवाली स्त्रियाँ मेरे घरमें हैं। इस समय विचित्र चित्तको सहारा देकर बड़ी कठिनाईसे मनके प्रसारका निवारण कर सीवाके साथ क्रीडाका परित्याग कर, उस देवरमण वनको छोड़कर नरवर राजाओंसे घिरा हुआ रावण, अपनी नगरीके सम्मुख चला। जनके मनों और नेत्रों के लिए सुहारना वह नगर ऐसा लगता था मानो धरतीरूपी कुलवधूने अपना स्वन रविरूपी बालकके लिए दे दिया हो ॥१-९॥ [२] वह पर्वत मानो धरतीका निकला हुआ मध्यभाग था। घह लंका नगर सात उपवनोंसे घिरा हुआ था। पहला वन पइग्ण नामका था, जो सज्जनके हृदयके समान विशाल था। जनके मन और नेत्रोको आनन्द देनेवाला दूसरा जिनवर के बिम्बकी तरह सचन्दन ( चन्दन वक्ष और चन्दनसे सहित ) था। तीसरा शुभसेतु वन शोभित था जो जिनवर शासनके समान ससावर ( श्वापदों और श्रावकोंसे सहित) था । चौथा समुच्चय नामका वन था, जो बकषलाका कारण्ड' और कौंच पक्षियोंसे युक्त था । पाँचवाँ सुन्दर चारण वन था, चम्पक, तिलक और बकुल वृक्षोंसे संछन्न । छठा निबोहउ वन था जो मधुकरों से गूंजता हुआ शोभित था। सातवाँ सुन्दर छाया वाला शीतल प्रख्यात नाम प्रमद जयान था। उस गिरिवरकी पीठपर लंका नगरी इस प्रकार शोभित है. जैसे प्रसाधन कर वधू गजवरके कन्धेपर बैठी हो ॥१–९|| [१०] तब उसने अशोकमालिनी नामकी बाधड़ी देखी, सुनहले रंग यह जैसे सपयोधर ( जल, स्तन धारण करनेवाली) सुन्दर कामिनी हो । वह चार द्वारों और गोपुरॉसे सुन्दर थी, चम्पक, तिलक, बकुल, नारंग और लवंग वृक्षोंसे आच्छादित
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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