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________________ एकचाकीसमो संधि ३४५ दूसरा कोई सुन्दर नहीं है, जो ऐरावतसे अभिषिक्त श्रीसे सेवित है ऐसी इस महादेवाके लिए जो आदेश देते हो इस समय तुम्हारा कहा करूनी, मयोंकि इस स्वार्थ के कारण अयुक्त भी युक्त होता है।" इस प्रकार जब उनमें वार्तालाप हो रहा था कि तबतक रात्रिके चार प्रहर समाप्त हो गये। सूर्योदय होनेपर अत्यन्त कृशोदरी मन्दोदरी सीता देवीकी दूती बनकर गयी। अन्तःपुरके साथ विभूषित वह हथिनियोंसे शोभित इथिनीके समान थी । वह देवोंके लिए सुन्दर नन्दनवनमें पहुँची और रामक्री गृहिणी सीता देवीको देखा। रावण और राम, दोनोंको प्रिय स्त्रियाँ सुन्दर थीं, मानो दक्षिण और उत्तर दिशाओंके दिग्गजोंकी हथिनियाँ हो ।।१-१|| । [१०] जब कृशोदरी रामकी स्त्रीको देखा तो मन्दोदरी अपने मनमें बहुत हपित हुई । (वह सोचती है ) यह अभिनव नारीरल अवतीण हुआ है, नहीं मालूम यह कहाँ उत्पन्न हुआ है, यह देवताको काम-कुतूहल उत्पन्न करनेवाली, मुनिमनको मोहित करनेवाली और नेत्रों के लिए प्रिय है। साधु-साधु ! प्रजापति तुम बहुत निपुण हो। तुम्हारी निर्माणशक्तिको कौन पा सकता है ? अथवा विस्तार और बहुत बोलनेसे क्या ? स्वयं कामदेव कामार्द्रतामें पड़ जाता है तो लंकाराजकी तो बात क्या है ? इस प्रकार अपने मन में प्रशंसा कर, अनुरागपूर्वक प्रिय शब्दोंमें हँसते हुए, दशाननकी पत्नी रामकी गृहिणीसे कहती है"हे परमेश्वरी, बहुत कहनेसे क्या? हे सुन्दरी, केवल तुम्हारा ही एक जीवन सफल है। सुरवरोंको भय उत्पन्न करनेवाला, त्रिलोकचक्रके लिए सन्तापदायक, रावण जहाँ तुम्हारी आनाकी इच्छा रखता है, वहाँ तुम्हारे पास क्या नहीं है ! ॥१-२|| __ [११] इन्द्रजीत, भानुकर्ण, घनवाहन, अक्षय, मय, मारीच और विभीषण, जो तुम रूठकर अपने चरणोंसे ठुकरा दोगी,
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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