________________
३४४
पउमचरित
वीसपाणि णिसियर-णरकेसरि। सुर-मिग-वारण दारण-अरि-करि ॥३॥ पर-णरवर-पाथार-पलोडण। दुइम-दाणव-बल-दलबट्टण ॥५॥ जझ्य? मिदिउ रणङ्गणे इन्दहीं। जाउ कुल-क्खउ' सआण-पिन्दहीं ॥५॥ तहिं वि काले पइँदुक्खु ण णायट । जिद खर-दूसण मरणे जायउ' ॥७॥ नगद पडी मिनिरलाई सुधार करइ भवराहो ॥८॥
घता
तो हउँ कहमि तउ उ सर-तूषण-सुषम्युमा । एचिउ डाह पर जं मई वहदेहि । इच्छई' ॥९॥
तं णिसुणेवि वयणु ससिवयगएँ । पुणु वि हसेवि वुत्तु मिगणयण" ।।१॥ 'अहो दहगीच जीच-संतापण। एहु अनुसु युनु प रावण ॥२॥ कि जम अयस-पशु आमालहि । अमय विसुद्ध देस किं मइलहि ॥३॥ किं पाइयहाँ पर ण बीहहिं । पर-धणु पर-कलत्तु जे ईहहि ॥४॥ जिगवर-सासणे पत्र विरुख। दुइ जा गिन्ति अविसुद्ध है ॥५॥ पहिला बहु छजीय-णिकायहुँ। वीयउ गम्मइ मिठायायहुँ ॥२॥ तइयउ जं पर-दब्लु लइ जह। वउथर पर-कालत्तु से विज्जड़ ॥७॥ पञ्चमु णउ पमाणु घरवारहों। हिँ गम्मई भव-संसारहों ॥४॥
घत्ता
पर-लोएँ वि पण सुहइह-लोएँ वि अयस-पडाइय । सुन्दर होद ण तिय ऍय-वेस जमउरि आइय' ॥१॥
पुणु पुणु पिछल-णियम्ब किसीयर । मणइ हिमयत्तणेण मन्दोपरि ॥१॥ 'जं सुहु कालकूड विसु खालहुँ । जे मुह पलयाणलु पइसम्तहुँ ॥२॥