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१४.
पउमचरिड विडिय-भर-पर-किय-ऋडमरणें । फामिणि-जण-मख-णयणाणम्दणें ॥५॥ सोयएँ सहु सुरषर-सतावणे। कुछ फुड लक पइट्टएँ रावण स७॥ तहि अवसर चन्दहि पराइय । णिस्य कम-कमले हिंदुह-घाइय॥८॥
घत्ता सुम्बुकुमार मुउ खर-दूसण जम-पहें लाइय । पई जीवन्तएँ ण एही अवस्थ हउ पाइय' ॥९॥ .
[ २ ] तं चन्दहिहें वयण दयावणु। णिसुणे वि थिट हेहामुहु राधणु ॥१॥ गं भयलम्छणु णिप्पहु जापा। गिरि व दवग्गि-दइट्स पिच्छायउ ॥२॥ णं मुणिवर चारिस-विभट्ट । भघिउ व भव-संसारही तटूट ॥६॥ वाह भरत-णग्राणु मुह-कायरु । गण गहिड णं हूउ दिपायरु ॥३॥ दुक्खु बुक्खु दुखणामल्लिउ । लयण-सणेहु सरन्तु पवोल्छिउ 14|| 'घाइड जेण सम्वु खरु दूसणु। सं पटवमि भ जमसासणु ॥६॥ अहवह एण का माहप्पें । कोण मरद अपूरे मप्पे ॥७ धीरी होहि पमायहि खोओ। कालु ण जम्मण-मरण-विभोओ ॥८॥
घत्ता को वि ण वजमउ जाएँ जी भरिएवर ! अम्हें हिं तुम्हें हि मि खर-दूसण-पहें जाएबउ ॥९॥
धीरेंचि णियय पहिणि सिय-मागणु । स्यणिहि गउ सोषणएँ दसाणा ॥१॥ घर-पहर के चडिड हलेसरु । गिरि-सिहर मइन्दु स-फेसर ॥२॥ गं विसहरु णीसासु मुअन्सउ । णे सजणु खल-लेइज्जन्तर ॥३॥