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________________ ३३८ पउमचरिउ रंगम्णु सुर-पाणणासु ओरड सुण्ड वयण रोण | धु स-विराहि पर राम ! खर-दूषण - मन्दिरें पसरेषि | साहारुण वन्धइ कहि मि रामु । रह-तिक चटके हिं परिभ्रमन्तु । गड ताम जाम जिण भवणु-दिडु कुवारढ करहु दसाणणासु ||३|| गज एक पराइड सकखणेण ॥ ४ ॥ कामिणि जणु मोहन्तु कामु ||५|| चन्दोयर- पुत्तहीँ रज्जु देवि ॥ ६ ॥ यह देहि-विओोएँ खामुखामु ॥७॥ दहिय-विहार-मत्र परिहरन्तु ॥ ८ ॥ परिभषि अहमत इछु ॥९॥ घन्ता जिपत्ररु निजाऍ वि चित्ते झाऍषि जाइ पिरारिउ विलम | माहिं भाएँ हिँ थोच-सहा सें हिँ थुअउ स मं भुवणाहि ॥ १०॥ सम्बुकुमार वीरे अत्यन्तएँ । दूरोसारिये सुन्द-महवलें । पत्थएँ असुर-मल्लें सुर- डामरें। पर-वल-वल- पवाणाहिन्दोल । मुक्तकुस-मयमक-गलथल्लणें । एकचालीस मो संधि खर- सण गिर्लेषि चन्दणहिहें सित्ति ण जाय । खयाल छुह रावणही पडीची धाय ॥ [1] खर- तूसण-संगा में समत्तम् ॥१॥ तमलङ्कार-यरु गएँ हरि-वलें ॥२॥ लङ्काहिवें बहु-ल-महावरें ॥३॥ बरि-समुद्द-रद-विरोलणें ॥४॥ दाण- रणझुण हस्थस्थलणें ॥५॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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