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पउमचरिउ
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गया केकया जत्थ अस्थाण-मम्मी । बरो मगिओ 'णाह सी एस कालो। पिए होउ एवं सओ सावदेवी ।
णरिंग्दो सुरिन्दों व पीढं वलग्गो ॥६॥ महं णन्दणो ठाउ रज्जाणुपाठी ॥७॥ समाचारिभी लक्षणो रामएवो ॥८॥
घत्ता
' तुहुँ पुसुम, तो एसिड पेसणु किनइ । छत बसण, वसुमइ भरहहाँ अप्पिनइ ॥१॥
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सो विन्तद् अधिरु असारु सम्षु ॥ १ ॥ अच्छ तववरण- णिहित- वित्तु ॥२॥ तो लक्खणु लक्खहूँ हणइ अज्जु || ३|| सत्तु हणु कुमारु प सुप्पहा वि ॥४॥ बोलिजइ दसरह - तरुण || ५ || जं कुल चढाइ वरण- पुझें ॥६॥ जं करइ विवक्स पाण-छेउ ॥७॥ गुण-हर्णे हियय-विसूरणेण ||८||
अहवह भरहु वि श्रासष्ण भन्छु । रु परियणु जीवित सरीरु वितु | वह मुवि वासु जह दिष्णु खजु। पण विहउँवि भरहु ण केकया वि। निसुर्णेवि पष्फुल्लिय-मुहेण । 'पुसद्द पुतणु एसिउं जे I जं पिय-जणण आणा-विहेज | किं पुते पुणु पयपूरणेण ।
घत्ता
लक्खगुण बिहाइ तनु भावों सच्चु पयासहों । भरहु महि हाँ जामि ताय वणव्वासहाँ' ॥९॥
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प्रेसरेण
I
ह - महाभरेण ||१||
हकारि भरहु पुणु - युच्च 'त छत्तहूँ त बसणड रज्जु साहेबउ म अपण कज्जु' || २ || तं चयणु सुणवि दुम्मिय-मणेण । धिक्कारित केकय-दणे ||३|| 'तुहुँ साथ चित्धु धिगत्थु रज्जु | मायरि विगत्थु लिरें पडउ वज्जु ॥४॥
उ जाणहुँ महिलहुँ को सहाउ । जोब्वण-मएण पण गणन्ति पाट ||५||