________________
१००
पउमचरित
जेण समाणु एह धण जम्पइ । मुह-मुहेप तम्बोलु समपाइ ॥३॥ हस्थ हस्थ धरै वि आलावद। स्थलग-जुअलु उच्य घडावह ।।। जं आलिइ वलथ-सणाहहिं ।। मालइ-माला-कोमल-वाहहिं ॥५|| जं पेलापह-यण-माय. हि। मुह परिचुम्बइ णाणा-महि ॥६॥ जं अवलोयह जिम्मल-साहिं। णयणहिं विमम-भरिय-विया हि जं अणुहुन्नर इच्छेवि पिय-मणे। सासु मालु को सयले वि तिहुमणे ॥८॥
55
पत्ता धषण एहु णरु जसु पुह णारि हियइच्छिय । जाब ण लइय मई कउ अङ्गहों ताघ सुइच्छिय' ||५||
सीय णिएवि जाउ उम्माहर। दहमुहम्मह-सर-पहराहउ ।। पहिलऐं वयणु पियारेहि भनाई। पेम्म-परम्बसु कहाँ वि ण लजह १२५ बीयएँ मुह-पासेउ वलगइ । सरहसु गाढालिगणु मगइ ||३|| ताय' अह विरहाणलु तप्पड। काम-नाहिल पुणु पुणु जम्पइ ॥१॥ चउथ जीससन्तु उ अकद । सिरु संचालइ भउँहर वकः ॥५॥ पञ्चमें पञ्चम-झुणि आलावइ । विहस वि दन्त-पम्ति परिसाषह ॥३॥ छट्टएँ अङ्ग वलइ कर मोहड्। पुणु दाहीयउ लएपिणु तोडदा॥ घदृष्इ तलवेल सत्समयहाँ। मुष्ठउ एनित जन्ति अट्ठमयहाँ ॥८॥ पवमद वहइ मरगहों दुका। दसमएँ पाणहि कह व प मुक्कउ ।।९॥
घत्ता
दहमुहु 'दहमुहें हिं जाण किर भातुएँ भुलभि' । अप्पर संभवह 'णं णं सुर-कोयहाँ सज्वमि' ॥१०॥