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पउमचरि
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जं दिट्ट्टु हदणु-शिहाउ । 'मॅट' दीसह काहूँ परा-मगें ।
वलए बुत्त सुमिति- जाउ ॥१॥ किं किष्णरणिवहुव चलित सभा ॥ २ ॥ किं पवर पक्खि किं घण त्रिसह । किं वन्दण-इन्तिएँ सुर पयट्ट' ॥३॥ वरा सुणेपिणु भद्द विहु । 'मल दासइ वद्दाहि उ चिन्हु ॥ ४ ॥ कुठे लग्ग मधु को वि तासु ॥५॥ हक्कारित लक्खणु खरेंण साम ||६|| तिह पाव परिकहि एन्त याज ॥ ७ ॥ सिंह पहरु पहरु पुरणालि पुस' ॥ ८ ॥
खगोण बिवाइड मोसु जासु । अवरोप्यरु ए आलाव जाव । 'जिह सम्बुकुमारहों' कम पाण। जिह कहउ लग्यु पर णारि सुप्त
घत्ता
एकेक पाहुण समाण हुँ चउदह महम समावडिय । यजेस मद्दन्दहोंरिव गोविन्दों हकारेपिशु भिडिय ॥९॥
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जोकारिच रामु जगणेण ॥ १ ॥ | ह ँ धरभि संष्णु मिग-जू हु जेन ॥२॥ राग्वेल एज भ्रणुद्दर-सहाउ ॥३॥ । आसोस दिष्ण सी उद्देण ॥ ४ ॥ करें लग्गड जयप्र- सिरि- बहुअ वदेहि मिय रिउ मद्दणेण ॥ ६ ॥ 'पश्चिन्दिय भग्ग जिणेण जेम ||७|
मच्छ ॥ ५॥
तर सम्म मरण मण काय नाय || ८||
पुत्यन्तरें महकभरण | 'तुर्डे सीय पयले रक्तु देव । अम्बेल करेसमिसीह णाव । तं वम सुविविसिय मुद्देण 'जसवन्तु विराट होहि चच्छ तं सेवि णिमित्तु जणणेण । तं शिसुवसीय युतु एम। नावीस परीसह च कसाय |