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________________ पउमचरित [1] सुर-समर-सहासें हिंदुम्मण । किड हवणु जिणिन्दहोदसरहेण ॥१॥ पट्टवियइँ जिश-तणु-धोषयाइँ। देविहिं दिग्व गान्धोदयाइँ ॥२॥ सुप्पहहें णवर कन्चुछ ण पत्तु । पहु पमणह रहसुमछलियनासु ॥३॥ 'कहें काईणियम्विणि मणे विसग्ण । चिर-चिसिय भित्ति व थिय विवण्ण'४॥ पणवेष्मिणु बुञ्चह सुप्पहाएँ। 'किर का, महु सणिय' कहाएँ ॥५॥ जइहउँ जे पाणवलहिय देव । तो गन्ध-सलिल पावइ ण केम' ॥६॥ तहि अवसर कम लुक पासु। छण-ससि व णिरन्तर-धवलियासु।।७।। गय-दन्तु अयंगम (1) पंड-पाणि । अणियच्छिय-पहु पक्रवलिय-वाणि 1141 पत्ता गरहिउ दसरहँण 'पई कम्इ का चिराषिङ। जलु जिण-बयणु जिह सुष्पहहें दवत्ति ण पाविड' ॥९॥ [२] पणप्पिणु तेण वि वुतु एम। 'गय दिया जोचणु हसिउ देव ॥१॥ पढमाउसु जर धवलम्ति आय । पुणु असई ३ सीस-बलगा जाय ॥२॥ गइ राष्ट्रिय विहडिय सन्धि-वन्ध । ण सुप्पन्ति कग्ण लोयग णिरन्ध ॥३॥ सिम कम्पह मुहें पक्षलाइ वाय । गय दन्त सरीरहों पर छाय ||21] परिगलिड रुहिरु थिउ णवर चम्मु । महु एल्थु ज हुद क अवर जम्मु ।।५॥ गिरि-णर-पषाह ण वहन्ति पाय । गन्धौवउ पायउ फेम राय' ||६|| चपणेण तेण किन पह-वियप्पु । गउ' परम-विसायहीं राम-चप्पु ॥७॥ चञ्चसउलु, जोविऊ कवणु सोक्छु । तं किजाइ सिजई जेण भोक्खु । ८॥ धत्ता सुप्हु महु-विन्दु-समु दुहुँ मेरु-सरिसु पक्षियम्भह । वरि त कम्मु हिउ जं पउ अजरामर लकमइ ।।१।।
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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