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परमचरित ममरि-विष-उवगीय-वमाले। अहिणव-पल्लव-कर-संचाः ॥७॥ सीहोरासिटिम-महान नायर ह-िगवना ॥४॥
घत्ता तहाँ भरमन्तरें अमर-मणोहरु णयण-कक्लिड एक्कु झधाहरु । तहिं रह करें वि घियह सच्छन्दई जोगु कएविशु जेम मुणिन्दई ॥९॥
[1] तेहिं तेहएँ वणे रिड-इमर करु । परिममइ समुदायत-धर ॥१॥ भारण्ण-गइन्दै समारुहइ । घण-गोवज वण-महिसिउ दुइ ॥२॥ तं खीरु चि चिरिडिहिल्लु महिउ । जाणइहें समप्पइ धिय-सहिउ ॥३॥ स वि पक्षावह घण-हण्डियहि। वण-धपणन्दुले हि सुकण्टिऍहिं ॥४॥ जाणाविह-फल-रस-तिम्मणे हिं। करवम्द-करोहिं साकणे हि ॥५॥ इय विविह-मक्ख भुगताई। घण-वासें तिहि मि अच्छन्ताहुँ ॥६॥ मुणि गुप्त-सुगुत्त ताव महय। असुदाणिय दोड-महत्वाइस ॥७॥ कालामुह-कावालिय भगद। मुणि संकर रावण तवसि गुरव ॥८॥
पत्ता वन्दाइरिय भोय पब्वइया हवि जिह भूइ-पुस-पच्छविया । ते झर-जम्मण-मरण्य-विधारा षण-चरियएँ पइसन्ति मधारा ॥१॥
[ २ ] शं पइसन्त पदीसिय मुणिवर। सापय जिह तिह पणविय तरुवर ॥१॥ मलि-मुइलिय खर-पवणायम्पिय । 'थाहु थाहु' णं एम पसम्पिय ॥२॥ के वि सुम-प-भारु मुन्ति । पाय-पुजणं विहि मि करम्ति ॥३॥