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________________ पउमचरित [१०] बहु-काले रपण-विचित्तरह। सट करें विमरवि परिभमें वि पह ॥१॥ उप्पपण वे चि सिस्थपुरें। कण-कण-अण-धण-पय-पडरें ॥२॥ विमलग्गमहिसि-खेमकरहुँ। अवरोप्परु णयण-सुरई ॥३॥ कुलभसणु पढमु पुत् पचरु । लड्डु देसषिसणु एक्कु अवरु |॥॥ अण्णु वि उप्पण्ण एक दुहिय । कमलोच्छच सन्द-चन्द-मुहिय ॥५॥ बेणि मि कुमार साहहि णिमिय । भापरियहाँ कहाँ वि समुहलचिय ॥६॥ पढमाण जुवाण-भाई चडिय। गं दइवें वे अणङ्ग पढिय ॥॥ विस्थय-वच्छयल पम्प-भुभ। णं गम्गहाँ इन्द-पडिन्द चुन्न ॥८॥ कमलोच्छष ताम कहि मि समावदिय । णे चम्मह-भल्लि हियएँ शान्ति पदिय ॥९॥ [ 1] कुलमसण-देसविहसणहुँ। णिय-वहिणि-रूव-पेसिप-मणा ॥१॥ पडिहाइ सम्दश-लेव-छवि। धवलामल-कोमल-कमलु ण वि ॥२॥ गवि जलु अलर दाहिण-पवणु । कुसुमाउहेण ण परिउ कवणु ॥३॥ पेक्खेपिपणु पयइँ सु-कोमल हैं। ण सहन्ति रूप-रत्तप्पलहूँ | पेपरनेकि थणषट सक्कलई उचिट्ट करिकुम्मस्थलइ ॥५॥ पेक्षेपिशु मुहु पालहें तणउ। पडिहाइ ण चन्दशु चन्दिणउ ॥६॥ लोयण रूवे पनुताई। ढोरा इव करमें खुसाइँ १०॥ पेषस्वेपिणु केस-कलाउ भणे। सुहन्ति मोर णचन्त प्रणें ॥६॥ पत्ता दिष्ठि-विस बाल सप्पहाँ अणुहरछ । जो जोह को वि सो सपलु चि मरइ । ९॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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