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________________ पउमचरित रामहाँ जयसिरि-रामासत्तहों। सवर-वरूहिणि-त्रिय-गत्तहाँ ।।५।। तहि अबसरें षडिय-अहिंमाणे । बुत्तु गरिन् चन्दपल्याणे ॥६॥ 'कहि विज्जाहरु कहि भूगोयरु। गय-मपय? वडारउ अन्तरू |७|| माणुस-खेनु में नाम कणिहुन । जोविउ तहि कहि तणउ विसि?उ'॥४॥ पत्ता मगइ णराहिउ 'केत्तिएंण जगे माणुस-श्वेत्तु में अग्गलउ । जसु पासिउ तिस्थकर हि सिद्धचणु लभूत केवल' ॥१॥ [१२] एवं णिसुर्णेवि मामण्डल-वप्। बुञ्चइ विजा-वल-माह पपें ॥१॥ 'पगुण-गुणइ अप-दुज्जय-गाव । पुरें अच्छन्ति एत्थु वे चावई ॥२॥ घजावत्त-समुदायत्त। जक्खारक्खिय-रक्खिय-गतइँ ॥३॥ कि मामण्डलेण कि रामें। ताइँ घडावा जो आयामें ॥३॥ परिणउ सोने का ऐउपाणि ii i#पमा परेवि पहु मणियउ ॥५॥ गय स-सरासणु मिहिला-पुरवरु । बङ्क मञ्च आढन्तु सयम्बर ६ ॥ मिलिय परावि जे जगे जागिय । सयक वि धणु-पयाव-भवमाणिय॥७॥ को वि माहि जो ताई चढावह। जक्ख-सहासहुँ मुहू दरिसावा ॥८॥ पत्ता जाम ण गुणहि चहन्ताअहिमायई कर सुह-दसण। अवसें जणही भणिट्ठाइ कुकलत्तइँ जेम सरासणई ॥९॥ [११] अंगरवह प्रलेस भवयाणिय । दसरह-तणय घयारि वि आणिय ॥१॥ हरि-वलएवं पकिय तेत्तहै। सीय-सयम्बर-मण्डउ जेन्हें ॥२॥ दूर-णिवारिय-णरवर-लखें हिँ। धणुहराई अलवियई जक्स हिं ॥३॥ 'अप्पण-भष्पणाई सु-पमाणइ । णिवाडेवि लेहु घर चाव' ॥४॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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