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हकारि विणि विदुरेण । संचारिमरवणय रहो ।
पउमचरित
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तं सुर्णेवि महावय धारण "मं मोहि थाहि अण्णों मवहीँ
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तहिं हयूँ बिहु समाषडिएँ । थिङ खन्धु समद्धे चिं एककु जणु जो पुण्य भवन्तरे पक्खिय | से बुइ "लोहा ओसरहि ।
जिय-वयर-बर- विरुद्धएण ॥१॥ कहिँ गम्मइ एवहिँ मडु मरहौं" ॥२॥
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पावास पर पाठ करेंत्रि । वसुभूइ-भिल्लु वण-जण-परें । णामेण अशुद्ध दुरि । दुलहाँ यि कुल-पन्वग्रहों । ते सुइय तासु जि सणय । गिरि-वीर महोहि हिर-गुण | पामक्किय स्वर्ण- -त्रिचित्त रह । छविस सलेह करें वि । जगन्तु अशुरु डामरिख ।
धीरिड लहुवड वडारपुर्ण ॥ ३ ॥
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उबसभा सहणु भूसणु तत्रहों ॥
अधुरन्धरें गरुअ-मारे पडिएँ ॥५॥ मिल्लाहिर अमुद्ध रण- मणु ॥६॥ पुरें जाणें परिरक्खियड ॥ ७ ॥ को मार रिसि तु महु मरहि" ॥ ८ ॥
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वोलाविय तेण कालान्तरेण मय । दय चर्डे वि पिसेणि लीलऍ सम्गु गय ॥ ९ ॥ [ ९ ]
बहु कालु पारस - तिरियहिँ फिरेंषि ॥ १॥ पट्टों उप्पण्णु अरिट्टरें ॥२॥ कणय पह-जणणि जणिय- हरिसु ॥३॥ पण परव पियब्वयहीँ ॥ ४ ॥ विष्णाण कला-पर-पार-गये ॥५॥ पय- पालण रज-कज- गिरण ॥३॥ पउमावसु ससि-सूर-पह ॥ ७ ॥ गड सग्गु विचध्वज तहिँ मरें वि ॥ ८ ॥ रणे रण-विचित्र धरिउ ॥९॥
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पहिं तेहि छड्डाविय, डमर ।
डुन अवर-भवेण अग्गिकेट अम्मद ॥ १० ॥