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पउमचरित
घता भाव जणग्र-सुय बउलट्टि भुग दरिसति पण बाहि। दिणयर-अस्थवर्णों गिरि-गुहिल-वणे उषसा समुहिट ताहि ॥१॥
[२] सो कोवग्गि-करम्बिय-हास। दिई णश्यलें भसुर-सहास. ॥१॥ अगणाई विष्फुरियाहर-वयण। अपण, रतुम्मिहिलय-जयणं है ॥२॥ अपण पि पिशवप। माणइँ णिम्मंस चुप्पेकसइँ ॥३॥ अण्ण पहें गवन्ति विषस्थइ । अण्ण तहि चामुण्ड-विहत्थई ।।४॥ भग्णई कवास, वेयालर। ऋत्तिय-मडय-काइँ विकरालाई १५॥ अग्ण मसि-वणाई भपसरथई। णर-सिर-माल-कचाल-विहस्य ॥६॥ अण्णाई सोणिय-महर पियन्ताहै। णचन्तइँ घुम्मन्त-घुलन्त ॥७॥ अपणई किलकिलन्ति च-पासें हिं। अण्णइ कहकहन्ति उवहासें हिं ।।८॥
घत्ता अण्ण, मीसगाई दुपरिसण 'मरु मारि मारि' जम्पन्तहूँ । देसविहसणहँ कुलमसणहँ आयई उपसा करम्तहूँ ।।९।।
[१०] पुणु आपण अण्णपण-पसारे हि। तुका विसहर-फण-फुकारे हि ॥१॥ अग्ण, जम्बुव-सिव-फेकारें हि। वसह-मडक्क-मुक्क-हेकारे हि ॥२॥ भग्णा, करिवर-कर-सिकार हि। सर-मन्धिय-अणु-गुण-टवारे हि॥३।। अण्ण. गद्दाह-मण्डल-सदेहि। अग्णइ बहुविव-भेसिय-गर्दै हिँ ॥४॥ अण्ण गिरिवर-तरुवर-नाएँ हि। पाणिय-पाहण-पवणुप्पाएं हिं ॥५॥ अण्णा भमरिस-रोस-फुरन्त। णयणे हि भग्गि-फुलिम मुगन्तई ॥३॥ अण्ण दह-जयणई सय-चयगई। अण्णा सहस-मुहई बहु-जयण ॥७॥ तहि तेइ वि काले मइ-विमलहुँ । तो वि ण चलिउ माशु मुणि-धवल हुँ॥८॥