________________
१९०
पटमचरिड
काई जि तुम-अजया। हगारि-तिक्खसिया ।।११॥ कहि मि आणणुण्णया । कुरा बुण्य-काणया ॥११॥
चता
हिं तेहएँ सइलें तस्वर-बहले भारूड वे वि हरि-हालहर। जाणइ-विजुल' धवलुजलएँ विश्चय माइ णय जालाहर ॥१३॥
[ ] पिडुल-णियाम्प-विम्य-रमणीमहें। राहउ दुम दरिसाव सोयह ।।३।। ऍहु सो धणे गरगोह-पहाणु। जहिं रिसहहाँ उप्पण्णड णाणु ॥२॥ हु सो सत्तवानु कि म मुणित । अजिबल-णाण-देहु जहिं पथुणिउ ॥२॥ हु सो इन्दवच्टु सुपसिड। जहिं संभव-जिणु पाण-समिछउ ॥१॥ ऍहुँ सो सरलु सहल संभूउ। अहिणन्दणु स-णाणु अहि हभड ॥५॥ एं पीथई। सीएँ सलापर। सुमाइ स-
म दु जाई जाब व॥ पछु सो सास सीएँ णियच्छित । पउमप्पड सणाणु जहि अछिड ७॥ ऍहु सो सिरिसु महमु जाणइ । णाणु सुपासें भणे वि जगु जाणइ ॥६॥ ऍहु लोणागरुषस्तु चन्दप्पहें। णाणुष्पत्ति ओरधु चन्दप्पडें ॥९॥ Jहु सो मालइसक्नु पदीसिउ। पुप्फयन्सु जहिणाण-विहूसित ॥१०॥
पत्ता हुँ सो पक्खतह फल-फुल्छ-मरु तेन्युइ-समाणु युद-प्यासहुँ । जहिं परिहूमा संभूबाई सीयल सेयंसहुँ ॥११॥
[५] ऐंह सा पारलि सुहरू सुपत्ती। घासुपुञ्जें जहिं णाणुप्पत्ती ॥३॥ ऐसु सो जम्बू एड्डु असल्थु । विमलापतहुँ णाण-समरधु ।।२।। उहु पहिवपण-गदि सुपसिदा। धम्म-सन्ति जहिं णाय-समिद्धा ॥३॥ उछु साहार-तिल दीसन्ति । कुन्धु-मरहुँ अहिं णाणुप्पत्ति ॥३॥