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________________ १६२ रण पिवस-साल-सहिउ । जिह जिह उग्वेल्ल हल-वह मय्यर सर संखोहियउ । बलु पढ अणन्तवीरु सुइ । · - जामण रणमुहें उत्थर ताम अयाण मुवि छलु पउमचरिय जुजनं पिव विहति अप्पाणु मिग-बिहु व गेएं 'की सीई समय की राय-सेप-सहिउ ॥ ५ ॥ णवेश जणु ॥ ६ ॥ मोहियउ ॥७॥ राह चन्दु मणेण ण कम्पिट | 'भो भो परवइ भरहु णमन्त हुँ । यो पर बल समुद्दे महणाय । जो पर-बल-गयहिँ चन्द्राय । जो पर-बल-रणिहिं हंसायद । जो पर-वल-भुनें गढायइ । जो पर-वल-घणी पचणाय । । घसा पहरशु धरइ पहूँ जोवगाहु सहुँ राऍहिँ । परिहरें त्रि बलु पष्ड भरहन्यरिन्दों पाहिँ ॥ ९ ॥ [0] पुणु पुणरुतेहिँ एक पजम्पिउ ॥१॥ कवणु पराहन किर अणुजन्तहुँ ॥ २ ॥ जो पर-बल-मियतें ग्रहणाय ॥३॥ जो पर-वल- गइन्हें सोहाय ॥ ४ ॥ जो पर चल- तुझे जो परवल वणोहें जो पर-बल-पषणो महिंसा ॥५॥ जहणाय६ ॥ ६ ॥ धरायड़ १७॥ जो पर-बल-धरीदें बजाय ॥८॥ घप्ता संजिव विरुद्धऍण मणे कुद्रण अवीरें अहर-फुरन्ते । रतुप्पल-दुरु-लोणेण जग मोयणेण णं किउ अवलोड कियन्ते ॥९॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
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