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सजण निम्मक-सब्किालकिऍ । कामिणि-ल-मण-मत्थल्लिएँ । सहिँ तेहऍ पुर- सरवरें दुज्जय ।
पठमचरित्र
संजय सुवि परिहार गड 'पहु एसई गायण आया हूँ । जाणहुँ किं विज्जाहरहूँ । अइ-सुसरहूँ जण-मण-मोहइँ | तं वय सुवि पराहिण | परिहारु पचाइ सुद्ध मणु । तं दणु सुचि समुष्टिय |
पता
कामिणि- वेस कियाहरण विहसि
वयण गय पत संस्थु पडिहारु |
सुबह 'आयहूँ चारण हूँ मरहों तहूँ जिए कहें जिन बेड पसाए || ९ ||
पिसुण- घयण- घण- पशुपक्किएँ ॥ ६ ॥ नरवर-इंस समूहिं अमेलिऍ ॥ ७ ॥ लीलऍ जाई पट्ट दिसागय ||८||
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। विष्णन्तु णराहिउ र अजय ॥ १॥ फुड माणूस मेण बाबाइँ १२ ॥ किं गन्धब्बई किं किण्णरहूँ ॥३॥ मुणिबरहु मिमण-संखोहण ॥४॥ 'दे दे पदसा' त्तु मिर्षेण ॥५॥ 'पसरह' मणन्तु कपट-तणु ॥ ३ ॥ णं दस दिसि वह एकहि मिलिय ॥७॥
घत
पठ परिन्द्रस्थाण-वर्णे रिड-रु-वणें सिंहासण- गिरिवर- मण्डिएँ । पोढ-विकासिणि-रूप-पहले वर-वेल्लह अइ-बीर-सीह-परिचट्टिएँ ॥ ८ ॥
तर्हि तेहऍरि अस्थाण-वर्णे । दिय-राहि दिडु किह । आरम्मिड अमाएँ पेक्खणउ । सुरयं पित्र यन्धकरण-पत्ररु ।
[६]
इह
खणें 11917 मियकु जिह ॥ २ ॥
पाणण जेम खत्तहँ म सुकलंस व सबलु सलल ||३|| कवं पिव छन्द - सद्-गहिरु ॥ ४ ॥