SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५८ पड़मचरित मरकण्णाड-लाह-जालन्धर । अपर वि जे एकेक पदाणा । काहीर-कीर-खस-बावर ॥११॥ केण गणेपिणु सक्रिय राणा ॥१२॥ ताम राहिउ कसण-सणु थिङ विमाण-मणु गं पडिउ सिरस्थले वन्नु । 'किह सामिय-सम्माण-भरु विसहिउ दुखुरु किद्द भरहों पहरित मनु' ॥१३॥ [३] जे परवड मणे चिन्तावियउ। हलहरु एमन्त-पक्रय थियउ ॥३॥ अट्ट वि कुमार कोकिय खणेण। वहदेहि भाय सहुँ लक्खणण ॥२॥ मेहले प्पिणु मन्तिउ मन्तणउ । बलु भणइ 'म दरिसहाँ अप्पणउ ॥३॥ रह-तुरय-महागय परिहर वि। तिय-धारण-गायण-बेसु करें वि ॥४॥ तं रिउ-अस्थाणु पईसरहौँ । णचन्त अगन्तवीर धरहौं' ॥५॥ तं वाणु मुणे वि परितुट-मण।। थिय कामिणि-वेस कियाहिरण ॥६॥ वलए जोइड पिय-वनणु । कि होइ ग होइ वेस-गहणु ॥७॥ 'लाइ सुन्दरि ताच तिट पयरें। अम्हें हिं पुणु जुज्मेवल समरे' ॥८॥ वत्ता लग्ग कढाएँ जणय-सुय कण्टइय-भुथ 'लहु णरबर-गाह ण एलहि । मह मेहले घि मासुर' रण-सासुरएँ मा कित्ति-बहुभ परिणेसहि ॥९॥ खेड्ड करें वि संचल्ल महाइय। णिविसे णन्वाध पराइय ॥१॥ दिट्टु जिणाल खण परिमोवि । समग गाएँ विधाएँ विणा चि ॥२॥ सोय ठवें वि पट्ट पुर-सरवरें। रहवर-तुस्य-महागय-जलयरें ।।३।। देउल-वहल-धवल कमलायरें। पदणवण-घण-तीर लयाहरें ॥४॥ चार-विलासिणि-गणिणि करम्विएँ । छप्पपणय-छप्पय-परिघुम्बिएँ ३५॥
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy