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एउमचरित
[६] वोठय जणय-कणय दुप्पेच्छ हि । वम्बर-सवर-पुलिग्दा-मेरठे हि ॥१॥ गरुयासचएँ वाल-सहायहाँ। लेहु घिसजिट, दसरह-रायहीं ॥२॥ तरइँ देवि सो वि सणउमइ । रामु स-लक्खणु ताव विरुष्पह ॥३॥ 'म. जीयन्ते साय सुर चल्लहि। हंगमि वहरि युद्ध कृस्थुरथल्लाहि ॥४॥ बुत्तु पराहिवेण 'तुहुँ चाकड। रम्मा-सम्म-गन्म-सोमाला ॥५॥ किह भालग्गहि गरवर-विन्दहुँ। किह २४ भाहि मत्त-गइन्सहूँ ॥६॥ किर रिउरहहँ महारह बोयहि। किह वर-नुस्य तुराडोयहि ॥७॥ पभणइ रामु 'ताप पल्लाहि । हउँ पहुश्चमि काइँ पयवति ॥८॥
घत्ता कि तमु हणइ ण चालु रवि किं वालु देवग्गि ण सहा वणु । किं करि दलाइ ण वालु हरि किं वालु ण डबा उरगम' ॥९॥
[ ] पहु पछटु पयहिउ राहउ । दूरासंबिय-मेछ-महाहउ ॥१॥ दूसहु सो जि अण्णु पुणु लक्षणु । एक्कु पत्रणु अण्णेक्कु हुआसणु ॥२॥ विषिण मि मिडिय पुलिन्दही साहणे । रहवर-तुरय-जोह-गाय-वाहणे ॥३॥ दीहर-सरे हि वहरि संताधिय । जणय-कणय रण उव्वेहाविय ॥४॥ धाहर समरक्षणे तमु राण्यउ' । वम्बर-सवर-पुलिन्द-पहाप्पड ॥५॥ सेण कुमारहों चूरिउ रहवरु । छिण्णु छन्तु दोहाइड धणुहरू ॥३॥