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पडमचरित
[ ] जं किड विम्मउ सासय-लक्खें। बुसु णपिशु पुअण-जाणे ॥१॥ 'तुम्हारउ वण-वसणु णिएप्पिणु। किउ मई पट्टणु माउ धरैप्पिणु' ॥२॥ एम भणेवि सुविस्थय-णामहाँ। दिण्ण सुघोष वीण ते रामहाँ ॥३॥ दिण्णु मउड साहरणु विषणु । मणि कुण्डल कटिसुत्तर काणु ॥१॥ पुणु वि पजम्पिङ जल-पहाणउ । 'हउँ तज मिच्चु देव तुहुँ राणउ' ॥५॥ एव वोल्लु पिम्माइय जावें हिं। कविलें णिहालिउ ताकें हिं॥६॥ जण-मणहरु सुर-साग-समागउ । वास्वपुरहों वि खग्रह माणउ ॥७॥ संपेक्रेवि आसकिउ वम्भणु। कहिं विस्थिष्णु रण्णु कहिं पट्टणु' ॥८॥
घत्ता प्रहरन्तु भय-मारुऍण समिहङ घिवि सणासइ जाहि। मम्मीसन्ति मियकमुहि पुरउ स-माम जक्खि थिय लावें हिं ॥९॥
[८] 'हे दियवर घडवेय-पहाणा। किपण मुणहि रामउरि अयाणा ।। १ ।। जण-मण-बालहु राधव-राणउ । मत्तगइन्दु व पगलिय-दाणङ ॥२॥ तबकुव-ममर-सएहिं ण मुम्बइ । वेइ असेसु विजं जसु रुचाइ ॥३॥ जोयह (?) जिणघर-णामु लएह । सहो कोषिणु पाण, देह ॥४॥ ऍउजं वासव-दिसएँ बिसालर । दीस तिहुअण-सिलउ-जिष्णालज ||५|| सहिं जो गम्पि फरह जयकारू । पाहणं णवरि तासु पइसारु' ॥६॥ तं णिसुणेपिणु दियवर धाड । णिपिसे जिणवर-भवणु पराइड ।।७।। तं चारिससूरु मुणि वन्देवि। विणल करवि अप्पाणउ णिन्दे वि ॥८॥
घत्ता पुच्छिर मुणियरु दियवरण 'दाणही कारणे विशु सम्मने । धन्में लइएं कयणु फलु एउ देव महु भक्ति पयसें ॥९॥