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सुर्णे व असुर-परायण हुँ । aft असे विवसš । एक्कहाँ मसि निम्मल धवल तणु एक्कड़ों महि- माणदण्ड चलण । एक्कही त म पीसियउ । एक्क लुसिय-सहिउ |
एक्कों मसाणु हेड हलु | एक्क मुह ससिकुन्दुज्जरूठ ।
तिचहिँ पडिउ |
बत्ता
सं वयणु सुणेपिणु विगय-मउ णीसन्दुजु विग्गड णिपुर ।
एवों चलणें हिँ पदिउ किह हियूँ जिपिन्दह इन्दु जिह ॥९॥
[
धगधगधगन्तु |
'शृणु हणु' भगन्तु |
करयल णन्तु । विष्फुरियवयणु ।
पउमचरिउ
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जं चिन्ह व ारायणहुँ ॥ १ ॥ सुरभुवणुच्छ लिय-महाजसहुँ ॥२॥ । अण्णेक्कड़ कुवलय- पण करणु ॥३॥ कहीँ हुम-दणु-दलः ॥४॥ अण्क्क कमल विडुसियस ॥ ५॥ सीगहि || ६ ||
महि- माणदण्डु |
सो ऋषि एव ।
जं पद्म पुण
मुक्काल्छु
अक्कहाँ हरु अतुल खलु ॥७॥ भण्णेक्कपण-वण-सामरूड' ॥८॥
विउ ल र्ण साह मज्जायएँ घरिङ ।
वलेण णित्रारियड़ |
]
सं लक्षणु कोवाणले चलि ॥१॥
थरथरथरन्तु ॥ २ ॥
ककि कियन्तु ॥३॥
घत्ता
सुणेपिणु असुल-बलु 'सुणु लक्खण' पचविउ एष वलु । जो ते लिह को जसु बि
॥९॥
महि लिन्छु || ४ ||
गिरियजय ||५||
परदल पचण्डु ॥६॥ 'रिव मेल्लि देव ॥७॥
पुजइहए
||४|
[ 10 ]
१०
||१||
சு इन्दु कष्णारि पु-पुणु विचवि मकर-भरिउ ॥ २॥