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परमचरित पिच्छिा कइ-कम्म-पयाई छ । इलुप धारण-गण-यणा ॥१॥ कण्ह. कामिणि-मुह-कमलाईव । बह जिणवर-धम्म-फकाई व ॥५॥ समसुत्ता किष्णर-मिहुगाई व । अह-संमत्तहँ वापरणाई व ॥३॥ तो पट्यन्तर कुम्वर-सारें। ओयारिड सण्णाहु कुमार ॥७॥ सुरवर-कुलिस-मज्म-तणु-अझै। णावह कबुद्ध मुबक भुभो ॥८॥
सिहुमण णाण सुरजण-मण-णयणाणन्द । मोक्षही कारणे संसार व मुक्कु जिणिन्दै ॥९॥
[ ५८ तहिं एकन्स-भवणे परछण्णएँ। जं अप्पाणु पगासिउ कण्णएँ ॥१॥ पुच्छिय राहवेण परिओसें । 'अस्तु का तुहुँ थिय परवेसे ॥२॥ सं णिसुणेपिणु पगलिय-यणी । एम पम्पिय गम्गिर-षषणी ॥३॥ 'रुदभुचि-गामेण पहाण्ड । दुजउ विम्झ-महोदर-राउ ॥॥ तेण धरेपिणु कुन्धर-सारउ पालिखिल्लु णिउ जणणु महारज ॥५॥ ते कर्जे थिय हउँ णर-बेसें। जिहण मुणिजमि जण असेसे' ॥६॥ ने णिमुणेवि वयशु हरि कुछ। णं पश्चाणणु आमिस-लुबउ ॥७॥ अचन्तन्त-णेतु फुरियाहरु । एम पजम्पिड कुरुनु समकार ॥४
पत्ता
'जइ समरमण तं रघभुत्ति पाउ मारमि । दो सहुँ सीय सीराउह गड जयकारमि' ॥१॥
[१९] जंकल्लाणमाण मम्भीसिय । रड पर-धेसु कइड मासासिय ॥१॥ ताप दिवायर गड अस्यवहाँ। लोड पद्धकरणिय-णिय-मवणही ॥२॥