SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 100 पउमचरि वहिं णर-गारि-वह जस-कीलएँ । कीलन्ता हूँ व्हन्ति सुर-लीलऍ ||५|| सलिलु करगोहिँ अप्फाकन्त हूँ । सुरव-व-घायहँ दरिसन्त हूँ ||६|| व लिएँहिँ बलिएँ हिँ अहिणव- गेऍहिं । अन्धाहिँ सुरय क्खित्तिय भेऍहिं ॥ ७ ॥ छन्देहं वाले हिँ बहु-खय भने हिँ । करणुच्छिते हि णाणा महिं ॥ ८ ॥ - घत्ता चोक् स-रागड सिङ्गार-हार-दरिसाबणु । पुक्खर जुज्नु व तं जल-कीळण्ड स ल खणु ॥ ९ ॥ वहें जय-जय सर्वे महाय पर । एरन्तरें समरे समयऍण । तणु-लुहाई देवि पहाणऍण ! पप भवणें पसारियहूँ । विस्थारि बिरथरु भोगणउ । रवि पट्ट-विहूसियत । सुरथं पिव सरसु स-तिम्मणव । मु सच्छ मीपणउ । [ १ पुणु पिच रू-सार-घर ॥१॥ सिर-मिय कयञ्जखि हृष्यऍ ॥२॥ पुणु तिमिण वि कुष्वर-राणऍण 11३ चाभियर पी बसारियाँ ॥ ४॥ सुकल व इच्छ ण मणउ ॥ ५ ॥ सूर पिन थालालयित ॥ १ ॥ वायरणु व सहइ स - विजणउ ॥ ७ ॥ किउ जग या पारण ॥८॥ ] घप्ता दिष्णु विषणु दिनहुँ देव बथएँ । सालकर हूँ णं सुकइ-कियइँ हुइ-साथ ॥१॥ । सीहि मि परिहिया हूँ देवश हूँ दुलह-सम्भहूँ जिण-वयणाएँ व वीहर-यई अस्थाणा व । । [ १७ ] उबहि-जलाइँ व बहल तर हूँ ॥ १ ॥ पसरिय-पट्टई उच्छ-बणाई व ॥२॥ फुलिप-ढाई उज्जाणाएँ ६ ॥२॥ F |
SR No.090354
Book TitlePaumchariu Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages379
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy