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पउमचरि
वहिं णर-गारि-वह जस-कीलएँ । कीलन्ता हूँ व्हन्ति सुर-लीलऍ ||५||
सलिलु करगोहिँ अप्फाकन्त हूँ । सुरव-व-घायहँ दरिसन्त हूँ ||६|| व लिएँहिँ बलिएँ हिँ अहिणव- गेऍहिं । अन्धाहिँ सुरय क्खित्तिय भेऍहिं ॥ ७ ॥ छन्देहं वाले हिँ बहु-खय भने हिँ । करणुच्छिते हि णाणा महिं ॥ ८ ॥
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घत्ता
चोक् स-रागड सिङ्गार-हार-दरिसाबणु ।
पुक्खर जुज्नु व तं जल-कीळण्ड स ल खणु ॥ ९ ॥
वहें जय-जय सर्वे महाय पर । एरन्तरें समरे समयऍण । तणु-लुहाई देवि पहाणऍण ! पप भवणें पसारियहूँ । विस्थारि बिरथरु भोगणउ । रवि पट्ट-विहूसियत । सुरथं पिव सरसु स-तिम्मणव । मु सच्छ मीपणउ ।
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पुणु पिच रू-सार-घर ॥१॥ सिर-मिय कयञ्जखि हृष्यऍ ॥२॥ पुणु तिमिण वि कुष्वर-राणऍण 11३ चाभियर पी बसारियाँ ॥ ४॥ सुकल व इच्छ ण मणउ ॥ ५ ॥ सूर पिन थालालयित ॥ १ ॥ वायरणु व सहइ स - विजणउ ॥ ७ ॥ किउ जग या पारण ॥८॥
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घप्ता
दिष्णु विषणु दिनहुँ देव बथएँ । सालकर हूँ णं सुकइ-कियइँ हुइ-साथ ॥१॥
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सीहि मि परिहिया हूँ देवश हूँ दुलह-सम्भहूँ जिण-वयणाएँ व वीहर-यई अस्थाणा व ।
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उबहि-जलाइँ व बहल तर हूँ ॥ १ ॥
पसरिय-पट्टई उच्छ-बणाई व ॥२॥ फुलिप-ढाई उज्जाणाएँ ६ ॥२॥
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