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पबमचरिब
दसण-सकेसह महर-महादलु । षष-मयरम्दा कण्णाय ॥ कोयण-फलन्धुप-परिघुम्बिन। कडिल-बाल-सेवाक-करवित ॥6॥
धत्ता लक्षण-सरवर हउ भुक्ख-महाहिम-वाएं। से मुह-पार लक्विज कुम्वरसाएं ॥९॥
[१२] जं मुहकमलु दिड ओहुल्लिड । वालिखिल-तणएण पोलिड | १॥ 'हे णरणाहगाह भुवणाहिष। भोयणु भुम्लहु सु-कलर्स पिष ॥२॥ स-गुल्लु स-सोणउ सरसु स-इन्छ । महुरु सुभाधु स-णे सु-पच्छउ ॥३॥ सं भूमि परम पियासणु । परछल कि पि करहु समासणु' ॥४॥ संणिसुणेवि पजाम्पत लक्षणु। अमर-वरङ्गण-णयण-कष्टपखणु ॥५॥ 'उल्हु जो दीसह रुषस्तु रवपण। पसल-बहल-दाल-संकष्णव ।।६॥ आयहाँ विजलें मूकें दणु-दारउ । बच्छह सामिसाल अम्हारत' ॥७॥
धत्ता लक्सप्ण-वळणे हिं बलु कोकिउ पकिउ स-कन्सउ । करिणि-विहूसिउ वणनगइन्दु महन्त ॥6॥
[१३] गुलुगुकन्तु हलहेइ माहगाड । सरुवर-गिरि-फन्दरहों विणिग्गउ ॥१n सेय-पवाह-गलिय-गण्डस्थलु। तोणा-यल-विउल-कुम्मस्थल ॥२१॥ पिच्छावलि-अशिजक-परिमालिउ । किरिणि-मा-मालोमालिउ ॥३॥ विस्थिय-वाण-विसाण-मयङ्करु । थोर-पलम्य-धाहु-लम्बिय-करु ॥४॥ घणुवर-कगणखम्भुम्मूलन। दुष्टारु-मेट्ट-पडिफूलणु ॥५॥ सर-सिकार करन्तु महापाल । तिस-भुक्तएँ खलन्तु विहलबलु ॥६॥