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पउमचरित
घत्ता
वाटु जणदणु आलीटएँ मञ्चे रवष्णएँ। णव-घरइसु व पच्छणु मिलिङ सहुँ कण्णाएँ ॥२॥
[१०] वे वि वट्ट वीर एक्कासण। चन्दाइच जेम गयणगणें ॥१॥ एक्कु पचण्ड तिखण्ड-पहाण: । अण्णेक्कु वि कुम्वर-पुर-राण ॥२॥ एकहाँ चलण-जुभल कुम्मुम्पाउ । मण्णेक्कहाँ रसुप्पल-बण्पाट ॥३॥ एकहाँ करू (१)-शुभमुसु-विस्था । अाफुमार सुम पचाणण-कद्धि-मण्डलु एकहाँ। पारि-णिसम्ब-चिम्बु अण्णेकहीं ॥५a एकहाँ सुललित सुन्दर भक्ट । अण्णेकहाँ तणु-तिबलि-तात ॥६॥ एकहाँ सोहा वियडु उरस्यछु । अण्णेकहाँ जोग्यणु थण-चकलु ॥७॥ पशहाँ बाहर दोह-विसालउ। अपणेव्हाँ णं मालाह-मालउ ॥४॥ पक्षण-कमलु पपफुलिउ पकहीं। पुण्णिम-बन्द-रुन्तु अणेकहाँ ॥९॥ एकहों गो-कमल विश्परियई। अपणेकहाँ बहु-विम्मम-मरियाई ॥१०॥ एकहीं सिरु वर-कुसुमें हिंवासिउ । अण्णेकहाँ बर-मडड-विहूलिउ ॥११॥
__घत्ता एछु स-लक्षणु लक्षिजइ जणेण असेसें । अण्णेका वि पुणु पच्छण्ण णारि णर-वेसें ॥१२॥
[1] वणु-दुग्गाइ-गाह-अवगाएं। पुणु पुणरुत्ते हि कुश्वर-णाई ॥३॥ णमण-कारपिसउ लक्षण-सरबह । जो सुर-सुन्दरि-णलिणि-सुहका ॥२॥ जो कब्रिय-वपकिन जो भरि करिहिण दोषि सकिउ ॥३॥ जो सुर-सउण-सहा हि माण्डिड । जो कामिणि-था-चाहिं बडि ॥४॥ बहिं तेहएँ सरे सेय-जलोल्लिज । लक्षण-पयण-कमल पप्फुल्लित ॥५॥ कण्ठ-मणोहर-दोहर-णाल। वर-रोमप्र-कश्खु-कण्टालउ ।।६।।