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सो ए वह गब्बु ।
उजागर होसह केम कज्जु ।
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पउमचरिङ
परियछड़ गाउ द
यावल मल्ल-कण्णिय करालु |
सं सुणेवि महता गय तुरन्त ।
जं जेम चवित्र तं कहिउ तेम ।
ण करड़ कर तुहारी इणि-रजणु लमु
किर वसिकिउ म महिषी सदु ॥३॥ कहाँ पासिङ णीसावष्णु रज्जु ॥४॥ तं पेश ि
सुग्गर- सुण्डि पट्टिस- बिसालु' ॥६॥ जिविस भरहों पासु पन्त ॥ ७॥
'पति- सरिसी विण गण देव ॥4
सिड मार्गे महाड |
घत्ता रिउम-कारो विरण-पितु मण्डे वि जुन सज्जु भिउ दाउ ||९||
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णं जरूणु जाल - माळा - सहाउ ॥१॥ सम्झइस रहसु सुहद-सूरु ||२॥ अट्ठारह अक्खोहणिड जाम ॥ ३ ॥ १ । जे सन्दण-वेसें परिभमन्ति ॥ ४ ॥ पउमक्खु सखु पिङ्गल च ॥५॥ पंथिय बहु भाय हिं पुण्ण-मेय ॥ ६ ॥ बारह सप्पासङ्गतणेण ॥७॥ वहुँ जक्ख-सहासे रक्खणे ॥८॥
अट्टीयर गम्भीरतणेण ।
को विवस्थ कषि भोयणहँ देह
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को वि स्थणहूँ की वि पहरणइँ गेह ॥ ९ ॥
को विहयगय को ओसहिङ भरह । विष्णाणाइरणहुँ को वि हर६ ॥१०॥
तं णिसुनें वित्ति पक्षिन्तु राज देवाविउ लहु सण्णाह-तूरु । आऊरिज बल वडर शाम । परिचिन्तिय पत्र णिहि संचलन्ति महाकाल काल माणव पण्डु । इसपु स्यणु पाव लिहिउ एय । द-जोयणाएँ तुङ्गतणेण |