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गत पथ समाय जाणहूँ । सायर-पल- पुष्चकोडीयउ । कालहुँ खेत्त-भाव-परदन् । शरथ तिर मणुअत सुरत । तिरथयन्तणाएँ इन्दप्तहुँ ।
पउमचरिउ
धम्मक्राणु सयल सुणे वि
मद्य भव-मय-सय-गय-मण क्रेण विपचाग्यय लक्ष्या । केहि मि गुणवयाइँ अणुसस्थिहूँ । मटणाणत्थमियाँ अबरेष्टहिं । जो जं सग्गड़ तं तहाँ देइ । अमर वि गय सम्मत्त एप्पिणु । जिण-धवलद्दों वि बबलु सिंहासनु उभय सेय छत्त सिय-वासरु ।
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दय-वरमदु
विहुअण-पहु वहाँ चाणहों उज्जाणहीँ
तिनुअणें सबले गविद्रुड |
किं बहुर्वेण आलावेण उ एक्कु वि तिल-मेसु वि सं जि जिणेण ण दिट्ठउ ॥ ३० ॥
सुर-र-उच्छेहाउ-प्रमाणहूँ ॥ ५॥ लोय विहाय - कम्म पयदीप ||६|| चारह अङ्गहूँ चउटाह !! ७७ कुलयर-डलहर-चकहरत हूँ ||८|| सिद्धलाइ मि कहइ समन्त हूँ ||९||
घन्ता
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चलु जीवित म सुवि। उवसमु जाउ सच्च- जहाँ ॥१॥ लोड करेवि के वि पव्वया ॥२॥ केहि मि सिखावयहँ पथरियाँ ॥ ३ ॥ अण्णे हि किय णिवित्ति अण्णेहि ॥४ हरधु भार खचेड़ ॥ ५ ॥ गिय णिय लिय-वाद्दणहिं चजेपि ॥ पण्णा रस - त्रिसह रासणु ॥१७॥ विश्वमास भामण्डलु मेहरू ॥८॥
घन्टा
केवल-किरण-दिवायरु । गउ तं गङ्गा- सायरु ॥ ९ ॥