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परमचरित
घत्ता ताएं संश पसन्तोग सुरह मि पिम्ममु लाइउ । 'ए वेसण सदसण किं मयरदउ भाइड' ||१०||
[१०] पंक्सवि ते देवागमणु सो अिणु तं जि समोसरणु ।
भव-भय-सएँ हि समलइड रिसहमेणु पहु पन्चहउ ॥१॥ मेय समाणु परम गम्भसर । दिक्खई ठिय चउरामी णरवर ॥२॥ चउ-कलाण-विहुइ-मणाहहाँ।। गणहर ते जि हुन जग-णाहहों ॥३॥ अवर वि जे जे भाव लइया । परासी महाम पन्वया ॥४॥ एयारह-गुणठाय-पमिदहुँ । तिणि लबरल साश्यहुँ पसिद्धहुँ ॥५॥ अजिय-गगहों मङ्गु के बुजिनम। देव वि दुझिय-कम्म-मलुजिय ॥६|| थिय चडपात परम-ििणन्दहा। णं सारा-गह पुषिणाम-चन्दही ॥७॥ वहर परिसेसवि थिय वणयर। महिम तुरङ्गम केसरि कुमार ॥ ८ ॥
घत्ता अहि गजल वि श्रिय सयल वि एकहि उवसम-मायण । किय-सेवहाँ पुरपवहाँ केवल-णाग-पहावेण ॥९॥
ताम विणिग्गय दिव्य झुणि कहइ तिलोअहाँ परम-मुगि ।
वन्ध-विमोक्य-काल बलइँ धम्माहम्म-महाफलाई ॥१॥ पुग्गल-जीवाजीच-पउत्तिव । आसव-संवर-णिज्जर-गुत्तिउ १२॥ संजम-णियम-लेस-वय-दाणा ।। तव-सीलीववास-गुगठाणई ॥३॥ सम्मईसण-गण-परिसई । सग्ग-मोक्रस-संसार-णिमिसा ॥४॥