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पउमचरित
[-] सुर-करि-वन्युत्तिणऍण बहु-रोमअभिण्णऍण ।
सपरिवार सुन्दरेण थुइ भाउत्त पुरन्दरेण ॥१॥ 'जय अजरामर-पुर-परमेस्सर । जय जिण आइ पुराण महेसर ।।२।। जय दय-रम-रयण-रअगायर। जय अण्णाण-तमोह-दिपायर ॥३॥ जय ससि मम्व-कृमुग-पडिवोहण | जय कल्लाण-णाण-गुण-रोहण ॥४॥ जय सुरु तइलोकपियामह । जय-संसार महाडइ-ठुयवह ॥ ॥ जय वम्मा-णिम्महण महाउस । जय कलि-कोह-हुआसण पाउस ||३|| जय ऋसाय वण-पलयसमीरण । जय माणहरि-पुरन्दरपहरण । जय इन्दिय-गयतले पञ्चाग ।। जय तिहुण-सिरि-गमालिशग ॥८॥ जाय कम्मारि-मार-माग। जय णिल जिरवेक्ष पिराण ||१
पत्ता तुह सामागु दुह-पासणु एवहिं उण्णइ चडियउ । में होन्ग पहवन्तण जगु संसार ण पडियड ॥१०॥
[२] . तं बलु तं देवागमणु सो जिणवर तं लभसरणु।
पेक्वंदि उपवणे अवयरिङ जाउ महन्तउ अछरित ॥१॥ पटणे पुरिमसालें जो राणउ। रिसहसेणु णामेण पहाणउ ॥१॥ सो देवागमु पिएँ वि पहासिउ। 'को सयदामह-वणे भावासिउ ॥३॥ कासु एउ एचड्डु पहुत्तणु । ओण विमाणहि पवह यहाणु' ॥३ तं णिसुणेवि कण अफालिउ । एम हेच महँ सन्चु णिहालिउ ।।५॥ भरहेसरहों वप्पु जो सुम्बइ। माहि-वलहु मणेवि जो थुम्चह ॥३॥ फेवल-गाणु तासु उप्पषण । भट्ट महागुणहिट-संपण्णा' ॥७॥ से णिसुणेवि मर मे लिया। स-वलु स-पन्धुवा संघल्लिड 11॥ सं समसरणु पइट्ट तुरम्मउ । "जय देवानिदेव' पमणन्त ॥५॥