SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पउमरित पीकारिणड गय पङ्गय मरवर। दीहिन पावि तलाय लयाहर ॥५॥ तहि अदरता गल्तान में सरका ': सुमन ॥६॥ विशिजन्नु चमर-परिवादि। सत्ताध सहि अच्छरकाहिहि ॥७॥ चडिट पुरन्दा म परिस। जय-मङ्गल-दुन्दुहि-गिाघो में ॥८॥ वन्दिण-पम्फा वहि परन्नहि। कटिबाल हि द्वाजण दिन्महि ॥९॥ इन्हा शिवद्धि अनलाभि । के त्रिविमूरिन विमुटा होवि ||१०|| घना ‘मल धरणई ज दुला तव-मरणई जाण-बल दिवु भरह करेसहुँ । इन्दत्त पावेमहुँ ॥११॥ ताम सुरासुर-वाहणई फलदं व सग्ग-दुमही तणई । मिणवर-पुष्य-वासदय हेहामुहई समागय ई ॥१॥ अवरो पर चूरन महाश्य । गिरि-मागुमोनरसिंहरु पराइय ॥२|| णिय-कर खरि भणइ पुग्न्दरु। उच्चायण-आन्हणु असुन्दा ॥३॥ जाई बिउवण-पति हुय है। रिउ ता आमलहु अई ॥४।। थिय देवासुर इन्दागमें। सम्न पडीया तण जि वेसें ॥५॥ जाणा-जाग-विमाण हि तेत्तहै। इन सभीसरगें जिगु जेत्तहें ।।६।। सयस वि तूरोणाविय-नस्श्रा। सयल चि कर-म उल अलि हत्या ।। सयल वि जयजयकार करता। सपल कि धोत्तनसयाई पदन्ता ८॥ सयल दि अप्पाणउ रिसन्ता। णामु गोतु णिय-णिराउ कहन्ता ॥९॥ सहि घेल गयणगाण सुर-मेला तारायण घना तेय-पिण्ड जिणु छन् । छण-मयलम्छणु णज्जह ॥१०॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy