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पउमचरिउ
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साहिय-जिय-सहाव-चरित्र थिउ जिणु णिक्षुय - कम्मर पुण्य-पवितु पाव-निण्णासणु । किसलय - कुसुम - रिद्धि-संपण्णउ | दिणयर-कोटि-पपात्र समुज्जलु । अत्त ओणामिय- मस्था | अणेसह तिहुअणु धवलन्तर । अण्णत्तहँ सुर-दुन्दुहि दिव्व मास अत्तई भासइ ।
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भट्ट षि पारि उप्पण्णा ।
इय-न्धि जसु सिद्धइ यह चक्कड़ों तलोकहों
चवीसहस्य परियरिज । णं ससहरु णिज्वलहर ॥१॥ अष्णुप्पण्णु धवलु सिंहास || १ || अपोत असोज उप्पण्णउ ॥ ३ ॥ अपसण्णु भामण्डलु ॥४॥ arre far aमर- विहत्था ॥५॥ भिण्ड धवल-छत्त-त ॥१६॥ णं पक्खुणे महोहि राज्जइ ॥७॥ अण्णेत्तहँ कम्मरठ-पणास ॥८॥ कुसुम-वासु अस वास ॥९॥ णं थिय पुण्ण-पुक्ष आण्णा ||१०||
धत्ता
बारह - जोयण पोठिम चsदिसु चउरुजाण वणु तिविहु कमय- पायारु प्रभाविउ | मानव श्रम्म चयारि परिट्टिय ।
गोर हेम परियरिथ हूँ । दह धय पउम मोर-पाणण । अणु विवस्थ चक्क छत्त-द्वय । एकेकऍ भए अहिणव छाय हुँ ।
पर - समाणु जसु अपर । सो ज देव परमप्पड ॥ ११ ॥
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मणहरु सब्बु सुवण्णमज । सुर-निम्मंत्रित सभोसरणु ||9|| धारह कोटा सोलह वाषि || २ || कण- तोरण- णिवह समुट्टिय ॥ ६ ॥ पत्र न थूह तर्हि चित्थरियई ॥ ४ ॥
गड मशल वसह वर-वारण फरहत अहन्त समुण्णय || ६ || सउ अट्टोलरु वित्त-पदाय हुँ ॥ ० ॥