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णिग्गउ 'याहू' भणन्तु भभिड ति-भ्रामरि दिन्तु
स
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of अवसरे उच्चाइय- वाहहों । बहु-लायण्णवपण संपण्णउ । सेलिङ को षि को वि हय चञ्चक को विषण्ण रुपय थाल हूँ । को विहाहरण होय । सम्ब धूलि समहूँ मण्णन्तड । जहि सेयं दंसणु पाहिउ । 'अज्जु पट्टु अणङ्ग- विचारत । इक्खु - रसही भरियअलि जं जे । ताम उद्दिसु लोएं छाउ ।
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वन्दे वि पइसारियउ निहेलणु । अष्णु वि गोमएण संभजणु । पुप्फहूँ अक्खयाउ वति दीवा । कर- पक्लाणु देवि कुमारें । अहिणव- इक्रसहों भरियञ्जलि | साहुकारु देवदुन्दुहि सरु । कण-रण कोडिङ वारह अवयदाणु मर्णे व सेयंसही ।
महि-विहरतों सिहुअण- जाहहीं ॥१ आग को वि पसा वि कण्णउ || २ || रयण को विकी वि वर मयगल ॥ ३ ॥ को विघण घण्णहूँ असरालहूँ ॥१॥ ता हूँ मंडार उ अवलोय ॥५॥ पट्टणु हरिणयरु संपत्त ॥ ६ ॥ छुद्ध छुड णिय परिवारहों साहिउ ॥७ महूँ पाराविउ रिस भडारट ||८|| ET वसुहार परिसिथ तं जे ||१|| सच्चउ जे जिणु बारें पराउ || १०||
धत्ता
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सकलसु स पुत्तु स परियणु । मन्दरहों जे तारायणु || १३ ||
किड चकणारविन्द पक्खालणु ॥१॥ दिष्ण जलेण धार पुणु चन्दणु ॥ १ ॥ धूव वास जल-वास पडी ||३ ॥ सहर सर्पिणण मिङ्गारें ॥४॥ ताव सुरेहि मुक्कु कुसुमाञ्जलि ||५|| गन्ध-वाउ वसुवरि निरन्तरू ॥ ६ ॥ पडिय लक्ख वसीसद्वारह ॥७॥ अक्वराय गाउ कि दिवसहों ॥८