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________________ पठमचरित अपहरे अण्णु काइ भिश्चत्तणु। तं जि इड पहरायहीं कारणु ॥३॥ लोयन्तियांह ताम पदिवोहिंउ । 'चारु देव ज सई उम्मोहिउ ||४|| उहिहि गव-णव-कोडाकोदिउ । ण? उ धम्मु सत्थु परिवाहिट || II गई दंगण-गाण्य-वरितहूँ। दाण-शाण-संजम-सम्मत्त. ॥६॥ ।। प३ महषय पञ्चागुब्धय । तिणि गुणवय घउ सिकासावय ॥७॥ णियम-सील-उपवाम-सहासइँ । पइँ होन्तेण हवन्तु असेसई ' ॥॥ घत्ता ताम विमाणास्ट चड-दिसु च देव-गिकाया। 'पई विशु सुग्ण मोक्नु' णं जिण-हक्कास आया ॥५॥ [११] सिविया-जाण सुरवर-सार। जय-जय-सई चविउ भडारउ ॥१॥ देवे हि खन्धु देवि उस्बाइड। णिविमें तं सिद्धथु पराइट ॥२॥ सहि उबवणे श्रोवन्नरु थाप वि। भरतहों राय-लरिछ करें लाएं वि ॥३॥ 'मह परम-सिवाण' मणन्ते। किउ पयागें जिसवणु सुरन्त ॥१॥ मुहिउ पत्र भरेपिणु लइयउ। चामीवर पडलावर थनियउ ||५|| गण्हें वि जण-मग-गप्रणायन्दें। बिना ग्वीर-समुः सुरिन्दै ॥६॥ तण समागु सनेहें लइया । राय चउ सहास पवइया ||७|| परिमिउ ममि जिह गह-संघाई। गद्ध वसु थिर काओसाएं ॥८॥ पत्ता पवणुङ्ख्यउ बाट सिहिहें वलन्तहाँ णाई रिसहही रेहन्ति विसालउ । धूमाउल-जाला-मालक ||५||
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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