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पउमचरित एवहिं को उचाउ जीवेवएँ। भोयणे खाणे पाणे परिहेवएँ ॥४॥ तं णिसुवि वयाण जग-सारउ । सयल-कल उ दाखवइ भडारउ ॥५॥ अण्णाहुँ अति मवि किमि वाणिजउ । अगहुँ विविह-पयारउ विजउ ॥३॥ काहि दिणे हिं परिणविउ देविउ । णन्द-सुणन्दाइड सिय-प्लेयिउ ॥७॥ सड पुत्तहुँ उप्पागु पहाणहँ । भरह-बाहुबलि-अणुहरमाणहूँ ॥४॥
घता पुच्चर लक्रस तिसटि गय रज्जु करन्तहाँ जान हि । चिन्तामण उपण सुरवह-महरायहाँ ताव हि ॥११॥
तिअण-जग-मण-णयण-पियारउ । मोयासत्तड णिऍवि भडारड ॥१३ मण चिन्ताविउ दससयलोयण। करमि कि पि बइरायहीं कारणु ॥२॥ जेण करइ सुहि-यत्त-हियत्तणु। जेण पवनइ विस्थ-पवत्तणु ॥३॥ जेण संलु उ णियमु ण णासइ । जेण अहिंसा-धम्मु पयासह ॥४॥ एम श्यिप विछाग-चन्दापण । पुषगाउस कोकिय गालाग ॥५॥ तिहुसण-गुरहे शाहि ओलग्गएँ। णहारम्भु पदस्सिहि अग्गएँ ॥६॥ तं आग लहें वि गय तेसह। थिउ अस्थाणे महारउ जेत्तहँ ॥७॥ पाउजिहि परजिउ तकखणे 1 गेउ वज्जु जं बुत्ता लक्षण ॥६॥
घत्ता र पइह सुरन्ति कर-दिट्टि-भाव-रस-रञ्जिय । विकभम भाव-विलास दरिसन्ति पाप विसजिए ॥५॥
जणीलक्षण पाणे दि मुकी। 'विधिगत्यु संसार असारद ।
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जाय जिणहो ता सङ्क गुरुको 111 अण्णहाँ अण्णु होइ कम्मारड ॥२॥