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पउमचरित
पुणु पादत्त जिणिन्दहाँ वन्दण । जय तिहुअण-गुरु णपणाणन्दण ॥६॥ जय देवाहिदेव परमम्पय । जय सियसिन्द-विन्द-चन्दिय-पय ॥७ जय मह-मणि-किरणोह-पसारण। तरुण-तरणि-कर-णियर-णिवारण ॥८॥ अय गमिएहि णमिय पणविज्ञहि । अरुहु वुसु पुणु कहाँ चमिजहि ॥१॥
धत्ता जग-गुरु पुण्ण-पवित्तु मिहुअणही मणोरह-गारा। अवे म अम्हहुँ देज जिण गुण-सम्पत्ति भडारा ॥१०॥
[-] पाय-णरामर-णयणाणन्दहों। वन्दण-हत्ति करन्तो इन्नहीं ॥१॥ रूवालोयण रूवासत्त। सिति ण जन्ति पुरन्दर-णेत्तई ॥२॥ जहि शिवडियइँ तहि जे पनुराई । दुन्चल-डोरई प व खुत्तई ॥३॥ वामकरणहउ गिदार वि । वालही तेत्थु अमिउ संचार वि ।१॥ पुणु वि पायउ मयण-विवार । गम्पि अउज्मा पवित्र महारउ ||५|| सूरे मरु-गिरि व परिजिन। पुणु दस-सब कर करें चि पच्चिउ ।। सालङ्कार स-दोरु स-जेठा। सच्छरु सपरिवारन्तर ॥1॥ जणणिए जंजिदिनु अहिसित्तउ । रिसह मणे त्रि पुणु रिसहुजं वुत्तउ ।।८
पत्ता काले गलत णा पिय-देई-रिद्धि परियनु । विवारजन्तु +ईडि वायरणु गन्थु जिह वढ्इ ॥९||
[4] श्रमर-कमारे हि सहुँ कालन्तहीं। पुन्वहुँ पीस लक्ष लन्तहीं ।।१।। एक-दिवस मय पर कूवार। देवदेव मुभ भुक्खा-मारे ॥२॥ जाई पसाएं भगद भण्णा । ते कप्पयह सच्च उफागा ||३||