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पदमचरित
का वि घेन तम्बोलु स-हस्य । सम्वाहरणु का वि सहुँ वरथे ॥५॥ पाठई का वि चमरु कम धोवह। का वि समुज्जलु दप्पणु ढोवह ॥६॥ उपरणय-खम्ग का वि परिरक्खद। का नि कि पि अखाणउ अफ्षद ।। का वि जक्षकदमेण पसाहह। का वि सरीरु साहें संवाहा ।
धत्ता नर- पमुनिया सुनिमि दिदी सीस पास पहु-पङ्गणाप बसुहार वरिट्ठी ॥२॥
दीसइ मयगल मय-गिल्ल-गण्ड। दीसइ वसहुक्षय-कमल-सण्डु ॥१॥ दीसइ पच मुहु पईहरच्छि। दीसह णव-कमलारून लच्छि ॥२॥ दीसह गन्धुक्कड-कुसुम दामु । दीसइ छण-यन्दु मोहिरामु ॥३॥ दीसइ दिपायरु कर-पजलस्तु । दीसह सम-जुयल परिम्भमन्तु ॥४॥ दीसइ जल-माल-कलसु वष्णु । दोसई कमलायर कमल-अपणु ।।५।। दोसाइ जलणिहि गजिय-जलोहु । दीसह सिंहासणु दिण्ण-सोहु ॥६।। दीसइ विमाणु घपदाक्लि-मुहलु। दोसइ णागालउ सन्नु धवल ||७|| दोसइ मणि-णियरु परिप्फुरन्तु । दीसह धमन्वउ धगधगन्तु 11८॥
पत्ता इय सुविणावलि सुन्दरिए मरुदेविए दीसह । गम्पिणु णाहि-णराहिवहाँ सुविहाणएँ सीसइ ॥९॥
तेण वि विहसे विणु एम कुत्तु । 'तउ होसइ तिहुअण-तिला पुत्तु " असु मेरु-महागिरि-हवणघी। पह-मण्डड महिहर-खम्भ-मील्ड ॥२॥ जसु मङ्गल कलस महा-समुर। मजणय काले बत्तीस इन्द' ॥३॥ तहो दिवसही लगनेंवि अक्षु वरिसु । गिब्याण परिसिय रयण-बरिसु॥४