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पउमचरित
किह रावण दह-मुहु धींस-हत्थु । अमरहिव-भुव-वन्धण-समरधु ॥७ वरिसद्ध सुअइ किह कुम्भयण्णु । महिलाकारिहि मि ण धाइ अण्णु।
पत्ता
जे परिससिउ दहवयणु सो मन्दोपरि जणणि-सम
पर-णारीहि समणु । किह लेड विहीसणु' ||९॥
[11] तं णिसुण वि वुश्चद गणहरेण। सु सेणिय किं वहु-विस्थरेग 11१1 पहिल.उ आयासु अणन्तु साउ। गिरवक्तु णिरक्षण पळय-भाउ ||| तहलोक परिहिउ मसँ तासु। चउदह रज्जुय आयामु जासु ॥३॥ तेत्थु वि झलार-मज्माणुमाणु । धिर तिरित्र-लोळ रज्जय-पमाणु ।।' तहि जम्बूदाज महा-पहाणु। विवरण लक्खु जोयण-पमाणु ॥५॥ चाउ-खेत्त-चरह-मार-णियामु। कविह-कुलपव्यय-पद-पयासु ।। तासु वि अम्मन्तर कणय-संलु । णवणवइ-उवा सहक मूल ॥७॥ तही दाक्षिण-भाग भरहु थक्कु । छापण्डालतिर एक-चक्कु ||६||
घत्ता तहि ओपपिणि-काले गएँ कप्पयरुच्छण्णा । वउदह-रयणविसस जिह कुलयर-उप्पण्णा ॥१॥
[१२] पहिला पतु पडिसुइ सुयवन्तउ । वीयउ सम्मई सम्मइवन्तउ ॥१॥ साउ खेमकर समझा। चउथउ समन्धरु रण दुद्धरु ।।२।। पडमु सीमङ्करु दोहर-करु । छट्टर सीमन्धर धरणीधरू ॥३॥ सप्तमु चारु-चक्नु चक्लुम्भउ। तासु काल उप्पवह विम्मउ ।।४।। सहसा चन्द-दिवायरन्दसणें। सयल वि अणु आसकिउ णिय-मणे । 'अहाँ परमेसर कुलयर-सारा। कोउहल्लु महु पर भवारा ॥