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________________ बीसमो संधि [११] यह सुनकर भानुकर्णने डोर नूपुरसे सहित अन्तःपुरको मुक्त कर दिया। अहंकारसे शून्य, वह अपने नगरके लिए उसी प्रकार गया मानो वारिसे ( जलसे या हाथी पकड़नेकी जगहसे) हथिनियोंका झुण्ड छूट गया हो। देवलक्ष्मीके विलाससे युक्त दशाननने वरुणको बुलाकर उसका सम्मान किया और कहा, "शरीरका नाश मत कीजिए, मृत्यु प्रहण और जल, सहवीरोंश शेती है । केवल पलायन करने लज्जित होना चाहिए, जिससे नाम और गोत्र कलंकित होता है।" रावणके शब्द सुनकर, सकरुण वरुणने उनके चरणों में प्रणाम करते हुए कहा, "जिसने धनद, कृतान्त और वकको सीधा किया, सहस्र किरण और नलकूबरको वशमें किया, उससे जो लड़ता है वह अज्ञानी हैं, आजसे लेकर, तुम मेरे राजा हो” ॥१-दा धत्ता--और भी मेरी चन्द्रमुखी कुमुदनवनी सत्यवती नामकी कन्या है, हे विद्याधर भुवनफे राजा, उसके साथ आप पाणिग्रहण कर लीजिए ||२|| [१२] बुधनयन दशमुखने कामदेवकी लक्ष्मीके समान वरुणकी कन्यासे विवाह कर लिया। आनन्द के साथ पुष्पविमानमें चढ़ा, और जय-जय शब्दके साथ उसने प्रयाण किया । नाना यान और विमान चल पड़े, सात रत्न नये खजाने, अठारह हजार सुन्दर स्त्रियाँ, तीन करोड़ कुमार, नौ अक्षोहिणी वरतूर्य, हजारों मनुष्योंकी अक्षौहिणियाँ, नरवर गज और अश्वोंकी अक्षौहिणियाँ, शूरोंकी चार इजार अक्षौहिणियाँ, साथ लेकर सन्तोष पूर्वक मंगल धषल और उत्साहकी घोषणाओंके मध्य रावणने पवनपुत्रका सत्कार किया, सुग्रीवने उसे अपनी कन्या पद्मरागा दी, और खर
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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