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________________ एगुणवीसमो संधि धत्तातब मामाने भी उसे समझाया, "हे आदरणीये, अपने मनमें विषाद मत करो, सिद्ध जैसे शाश्वत-सिद्धिको देखते हैं, उसी प्रकार मैं तुम्हें पवनकुमारको दिखाऊँगा" ॥१०॥ [१७] इस प्रकार बार-बार अंजना सुन्दरीको समझाकर बह नराधिप सिंह अपने विमानमें बैठ गया। वह वहाँ गया, जहाँ केतुमती और प्रहादराज थे। अशेष नरवर समूह एक साथ होकर उसे खोजने के लिए गये, वे उस भूतरवा अटवीमें पहुँचे, जो ऐसी मालूम होती थी, जैसे अपने स्थान च्युत मेघकुल हों। पवनंजय जिस गजपर बैठकर गया था, वह कालमेष उन्हें वहाँ दिखाई दिया | अपनी मह और मुख ऊंचा किये हुए, कान फैलाये हुए, लाल-लाल आँखोवाला वह महागज दौड़ा, सेनाने उसे नियन्त्रित किया, वह अतुलबल फिर वापस वहाँ गया। हथिनी ले जानेपर वह उसी प्रकार वशमें हो गया जिस प्रकार कमलिनियोंके समूह में भ्रमर स्थित रहता है। वनमें खोजते हुए अनुचरोंने उसे बेलफलोंके लतागृह में बैठे हुए देखा। सैकड़ों विद्याधरोंने असे वैसे ही नमस्कार किया, जिस प्रकार आये हुए देव जिनयरको नमस्कार करते हैं ।।१-१०॥ घसा यह मौन लेकर बैठा था, ध्यानमें लीन, न बोलता है और न डिगता है, सभीको यह भ्रान्ति हो गयी, क्या यह मनुष्य काष्ठमय निर्मित है" ॥११॥ [१८] उसने अपने हाथसे धरतीपर श्लोक लिख रखा था, "अंजनाके मर जानेपर मैं निश्चित रूपसे मर जाऊँगा।" यदि उसके जीनेकी खबर सुनूंगा, तो बोलूंगा । बस मेरी इतनी ही गदि है।" यह पढ़कर हनुरुह द्वीपके राजाने अंजनाका समाचार उसे दिया कि किस प्रकार म्लान रक्त कमलके समान मुखवाली बसन्तमाला और अंजना दोनों, दानों नगरोंसे
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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