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________________ सगुणवीसमो संधि [१५] यह सुनकर पवनंजयकी माँक सब अंगोंमें वेदना फैल गयी । वह मूच्छित और संज्ञाशून्य हो गयी। हरिचन्दनके रससे छिड़ककर (गीला कर ) किसी प्रकार पुण्यके वशमे वह फिरसे जोषित हुई। (वह विलाप करने लगी), "हा पुत्र-पुत्र, मुझे मुँह दिखाओ, हा पुत्र, पुत्र, तू कहां गया, हे पुत्र आ, और मेरे चरणों में पड़, हा पुत्र-रथ और गजपर पढ़ो, हा पुत्र-पुत्र, उपवनोंमें घूमो, हा पुत्र, पुत्र, तुम गेंदोंसे खेलो, हा पुत्र-पुत्र, तुम सिंहासनपर बैठो, हा पुत्र-पुत्र, महायुद्धमें तुम वरुणको पकड़ो, हा बहका बड़. मैंने बिना परीक्षा लिग तुमे निकाल दिया। तब प्रज्ञादने उसे धीरज बैंधाया, "अपना मुँह पोंछो, अकारण तू क्यों रोती है, हे कान्ते, मैं तेरे पुत्रकी खोज करता हूँ, यह पृथ्वीमण्डल है कितना ॥१-९| यत्ता-यह कहकर और उसका उपचार कर राजाने शासनधरोंके द्वारा विजयाकी दोनों श्रेणियों में निवास करनेवाले विद्याधरोंके पास लेख भेजा ॥१०॥ [१६] एक योद्धाको सूर्य, शक्र और त्रिलोकमण्डलको सतानेवाले रावणके पास भेजा, एक और, दोनों खर और दूषणको, जो पाताललंकाके भूषण थे, एक और, कपियोंके राजा, और किष्किन्धाधिप सुग्रीव के पास, एक और वानरोंमें प्रमुख किष्कपुरके राजा नल और नीलके पास, एक और प्रैलोक्यमें प्रधान राजा महेन्द्र के पास, एक और धवल और पवित्र कुलवाले, अंजनाके मामा प्रतिसूर्य के पास । उस खोटे पत्रके पहुंचते ही भयभीत हनुमानकी माँ मच्छित हो गयी। उसपर शीतल चन्दनका छिड़काव किया गया, और ससम कामिनीजनने हवा की । पवनंजयकी प्रिया अंजना आश्वासित हुई, मानो हिमाइत कमलश्री हो ॥१-९।। २१
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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