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________________ एगणवीसमो संधि २१९ देखा है, उस शुद्ध और सतीमनको देखा है। अहो अशोक ! पल्लवोंके समान हाथवाली, उसे देखा है ? हे कोकिल, कोकिलवाणी कहाँ गयो १ अरे सुन्दर चन्द्र ! वह चन्द्रमुखी कहाँ गयी, हे मृग, बताओ क्या तुमने मृगनयनीको देखा है ? अरे मयूर! तुम्हारे कलापकी तरह बालोंवाली उसे क्या तुमने देखा है ? क्या वह विरह विधुरा तुम्हें दिखाई नहीं दी ? ॥२-९॥ ___यत्ता-उस विपुल बियावान जंगलमें भटकते हुए उसे एक महान वटवृक्ष इस प्रकार दिखाई दिया कि जिस प्रकार शाश्वतपुरके परमेश्वर जिनभगवानने दीक्षाके समय प्रयागवन देखा था॥१॥ [१४] उस वटवृक्ष और दूसरे एक सरोवरको देखकर भमजयनेमके कामे के लाजवर ना माँगी । जो हमेशा मैंने तुम्हारे कानों में शब्द किया, अंकुशके खरप्रहारोंसे जो विदीर्ण किया, आलात खम्भेसे जो तुम्हें बाँधा, श्रृंखला और बेड़ियोंसे जो नियन्त्रित किया, हे गज, वह सब तुम क्षमा कर दो। उसने शीघ्र वहाँ यह प्रतिज्ञा कर ली, "यदि पत्नीका समाचार मिल गया, तो मेरी यह संन्यासनाति नहीं होगी, पर यदि मेरा यह भाग्य नहीं हुआ, तो मैं संन्यासविधि ले लूंगा।" राजा मौन होकर उसी प्रकार, स्थित हो गया जिस प्रकार परममुनि सिद्धिका ध्यान करते हुए मौन धारण करते हैं। वह गज स्वच्छन्द विचरण करता, परन्तु स्वामीके सम्मानको नहीं भूलता। वह उसकी रक्षा करता, और किसी भी प्रकार उसका साथ नहीं छोड़ता, जैसे भवभवका किया हुआ पुण्य साथ नहीं छोड़ता ॥१-२॥ __घत्ता-इसी बीच, दुखी है चेहरा जिसका, ऐसी पवनंजयकी माँसे रोते हुए प्रहसित ने कहा, "यह मैं नहीं जानता कि अंजनाके वियोगमें पवनंजय कहाँ चला गया है" ॥१०॥
SR No.090353
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages371
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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